सन् 1919 ई० में भारत सरकार अधिनियम के अनुच्छेद 84 की व्यवस्था के अनुसार विगत कार्यों की समीक्षा करने और नये सुधारों का सुझाव देने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन (Simon Commission) की स्थापना की।
इस कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे और अन्य छह सदस्य भी अंग्रेज ही थे।
भारतीयों ने इसका बहिष्कार किया। 1927 के दिसम्बर महीने में कांग्रेस ने मद्रास अधिवेशन में साइमन कमीशन के बहिष्कार का निर्णय लिया गया और लोगों से यह आग्रह किया गया कि वे कमीशन के आगमन के दिन सामूहिक प्रदर्शन करें और यह कमीशन जहाँ भी जाए वहाँ भारतीयों द्वारा इसका विरोध हो।
कांग्रेस के अतिरिक्त मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा तथा लिबरल फेडरेशन ने भी इस कमीशन का विरोध किया।
2 फरवरी, 1928 ई० को साइमन कमीशन बम्बई पहुँचा, जिसका स्वागत हड़तालों और साइमन वापस जाओ के नारों से हुआ।
बंबई से दिल्ली पहुँचने पर भी इस कमीशन का स्वागत वापस जाओ'के नारों से हुआ।
लाहौर में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में विशाल जन-समूह ने साइमन कमीशन का विरोध किया। फलतः पुलिस ने प्रदर्शन में भाग ले रहे व्यक्तियों पर लाठियों और डंडों से निर्ममतापूर्वक प्रहार किया। इसमें लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गए।
लखनऊ में जवाहर लाल नेहरू और गोविन्द बल्लभ पन्त भी घायल हो गए। ऐसी ही स्थिति सम्पूर्ण भारत में रही।
इन प्रदर्शनों के बीच क्रांतिकारी पुनः सक्रिय हो गये। उसकी कार्यवाही में एक पुलिस अधिकारी सैन्डर्स की हत्या हुई और सरदार भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा में बम विस्फोट किया।