आवेश (Charge) न तो उत्पन्न किया जा सकता है, और न ही नष्ट किया जा सकता है। यह आवेश संरक्षण का नियम (Law of Conservation of Charge) कहलाता है, जो एक सार्वत्रिक नियम (Universal Law) है।
किसी पृथक्कृत निकाय (Isolated System) में कुल आवेश (धनावेशों तथा ऋणावेशों का बीजगणितीय योग) नियत रहता है।
उदाहरण—
(i) घर्षण द्वारा वस्तुओं को आवेशित करने पर दोनों वस्तुओं पर एक साथ ठीक बराबर किन्तु विपरीत आवेश उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार दोनों वस्तुओं पर उत्पन्न आवेश की कुल मात्रा शून्य है। वस्तुओं को रगड़ने से पहले भी उन पर कुल आवेश शून्य ही था।
(ii) इलेक्ट्रॉन व पॉजिट्रॉन पर ठीक बराबर किन्तु विपरीत प्रकृति के आवेश होते हैं। जब एक इलेक्ट्रॉन तथा एक पॉजिट्रॉन परस्पर सम्पर्क में आते हैं, तो दोनों एक-दूसरे को नष्ट करके ऊर्जा में बदल जाते हैं। इलेक्ट्रॉन और पॉजिट्रॉन के आवेशों का योग शून्य होता है, जो उनके ऊर्जा में बदलने पर शून्य ही रहता है।
(iii) नाभिकीय अभिक्रियाओं में भी आवेशों का संरक्षण होता है। जैसे, नाभिकीय विखण्डन की घटना में -
92U235 + 0n1 → 56Ba144 + 36Kr89 + E
E = Energy
(iv) सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में आवेशों का बीजगणितीय योग नियत है। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय ऊर्जा, द्रव्य (Matter) तथा प्रतिद्रव्य (Antimatter) की अत्यन्त विशाल मात्रा बिग-बैंग (Big Bang) द्वारा उत्पन्न हुई। द्रव्य तथा प्रतिद्रव्य में ठीक बराबर किन्तु विपरीत आवेश थे। उन समस्त आवेशों का बीजगणितीय योग उस समय भी शून्य था, आज भी सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (Universe) में समस्त आवेशों का बीजगणितीय योग शून्य ही है।