त्रावणकोर (केरल) का राजपरिवार अपनी विद्वता के लिये प्रसिद्ध था। यह राजवंश सदा से ही साहित्य तथा कलाओं का संरक्षक रहा था।
स्वाति तिरूनल राम वर्मा बहुमुखी कलाओं के धनी और प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। कर्नाटक तथा हिंदुस्तानी दोनों प्रकार के शास्त्रीय संगीत के वे उत्कृष्ट संगीतकार थे।
केरल में त्रिवेंद्रम (तिरुवनंतपुरम) का पद्मनाथ मंदिर व उससे सटा हुआ पुथेनमलिका महल (कुटीरमालिका प्रसाद) साहित्य-संगीत व अन्य कलाओं के सर्वश्रेष्ठ समागम केंद्र थे।
स्वाति तिरूनल पाँच भाषाओं-संस्कृत, मलयालम, हिंदुस्तानी, तेलुगु और कन्नड़ के अच्छे ज्ञाता थे।
इन्होंने इन पाँच भाषाओं में संगीत की लगभग 400 रचनाएँ कीं। वे सभी भक्ति रस की हैं और सभी में पद्मनाथ का उल्लेख है।
उन्होंने भक्ति के नौ मार्गों की व्याख्या नौ कीर्तनों में की, जिन्हें नवरत्नमालिका कहते हैं।
उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ अधिकांशतः सामान्य रागों में रचित है, जबकि कुछ की रचना विरल रागों, जैसे - गोपिकावसंतम, शुद्धभैरवी, पूर्ण कांभोजी तथा ललित-पंचमम् में निबद्ध हैं।
उत्तर भारतीय रागों में खमाज, बिहाग, हमीर, कल्याणी तथा काफी शामिल है।
उन्होंने संगीत के नृत्य रूपों, जैसे- स्वरजातियों और तिल्लाना आदि की रचना की है।
वे स्वाति तिरूनल ही थे, जिन्होंने पश्चिमी वाद्य वायलिन को कर्नाटक संगीत में मान्यता दी।