उस्ताद शहनाई सम्राट उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ का जन्म बिहार के एक छोटे से गाँव डुमराँव में हुआ था।
इन्होंने अपने जीवन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंश वाराणसी में व्यतीत किया।
शहनाई वादन की कला में महारत हासिल करने वाले बिस्मिल्लाह खाँ अपने चाचा अली बख्श (विलायत खाँ) के साथ बचपन से ही वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर में सुबह-शाम शहनाई का अभ्यास करते थे।
एक ऐसे दौर में जब गाने-बजाने को सम्मान की निगाह से नहीं देखा जाता था, तब बिस्मिल्लाह खाँ ने बजरी, चैती और झूला जैसी लोकधुनों में बाजे को अपनी तपस्या और रियाज़ से खूब सँवारा और क्लासिकल मौसिकी में शहनाई को सम्मानजनक स्थान दिलाया।
मजहबी शिया होने के (खाँ साहब विद्या की देवी सरस्वती के परम उपासक थे। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और शांति निकेतन ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया था।
भारत रत्न, रोस्टम पुरस्कार, पद्म श्री, पद्म भूषण, तानसेन पुरस्कार आदि से सम्मानित बिस्मिल्लाह खाँ का नाम युगों युगों तक अमर रहेगा।