सविनय अवज्ञा आंदोलन। Savinay Avagya Aandolan
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सविनय अवज्ञा आन्दोलन (Savinay Avagya Aandolan) : सविनय अवज्ञा आंदोलन को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में देखा जाता है।

यह एक महान ऐतिहासिक संघर्ष था, जिसकी शुरूआत सन् 1930 ई. में हुई। इस आंदोलन के शुरू होने के कुछ महत्त्वपूर्ण कारण निम्नांकित थे।

  1. स्वराज्य दल की असफलता - असहयोग आंदोलन की स्थापना और स्वराज्य दल की असफलता के फलस्वरूप राष्ट्रीय आंदोलन का प्रभाव मन्द पड़ गया था। जिसमें तीव्रता लाने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया।
  2. साइमन कमीशन (Simon Commission) - 8 नवम्बर 1927 को लार्ड इरविन द्वारा घोषित साइमन कमीशन के विरोध के लिए प्रदर्शन आयोजित किए गए। विरोध प्रदर्शनों ने भारत में आंदोलन का वातावरण तैयार कर दिया था। फिर कमीशन के प्रतिवेदनों ने तो भारतीय जनमानस को बिल्कुल उद्वेलित ही कर दिया। फलतः सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ हुआ।
  3. नेहरू रिपोर्ट (Nehru Report) - अंग्रेजों का भारतीयों के विरुद्ध यह तर्क होता था, कि भारतीय नेतागण सम्मिलित रूप से किसी विधान का निर्माण नहीं कर सकते हैं। उनके इस तर्क के जवाब में 28 .फरवरी, 1928 ई० को दिल्ली में विभिन्न दल के नेताओं का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें लिये गये निर्णय के अनुसार पं. मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हुआ; जिसका काम एक संविधान का प्रारूप तैयार करना था। इस समिति के अन्य प्रमुख सदस्यों के सरतेज बहादुर सप्रू, सर अलीइमाम, सरदार मंगलसिंह और सुभाषचन्द्र बोस आदि का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। इस समिति ने औपनिवेशिक स्वराज्य, केन्द्र में उत्तरदायी शासन, मौलिक अधिकार, संयुक्त निर्वाचन तथा सर्वोच्च न्यायालय आदि की स्थापना के संबंध में एक प्रतिवेदन दिया, जिसे दिसम्बर 1928 ई० के कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में स्वीकार कर लिया गया। इस रिपोर्ट को ही नेहरू रिपोर्ट कहा जाता है। नेहरू रिपोर्ट को ब्रिटिश सरकार द्वारा अस्वीकृत कर दिये जाने के कारण भारतीयों के सामने संघर्ष के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं रह गया था।
  4. आर्थिक मन्दी (Financial Crisis) - सन्1929-30 की विश्वव्यापी आर्थिक मन्दी और व्यापक बेकारी के कारण देश भर की आर्थिक दशा बड़ी दयनीय हो गयी थी। आर्थिक भार से मजदूर, किसान, व्यापारी और सामान्य जनता इतनी तंग आ गयी थी, कि एक गज कपड़ा या एक बोतल किरासन तेल खरीदने की क्षमता उनके पास नहीं रह गयी थी। ऐसी स्थिति में जनता की परेशानियों को दूर करने के उद्देश्य से गाँधीजी द्वारा सरकार के सामने न्यूनतम माँगें प्रस्तुत की गयीं। परन्तु सरकार ने उनकी न्यूनतम माँगों को भी अस्वीकृत कर आंदोलन का रास्ता साफ कर दिया।
  5. स्वाधीनता दिवस की घोषणा - सन्1927 ई. के दिसम्बर में पण्डित जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन, लाहौर में हुआ। 31 दिसम्बर की रात्रि में रावी नदी के तट पर भारत का तिरंगा झंडा फहराकर पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पारित किया गया। इसी अधिवेशन में यह भी निर्णय लिया गया कि आवश्यकता पड़ने पर कांग्रेस कार्य समिति सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर सकती है।
  6. दिल्ली घोषणा-पत्र - सन् 1929 ई० में इंगलैंड में मजदूर दल के सत्ता में आने के बाद 31 अक्टूबर, 1929 को इरविन ने दिल्ली में यह घोषणा की कि शीघ्र ही भारत की राष्ट्रमण्डल में समानता का दर्जा दिया जायेगा और उसे अधिराज्य की स्थिति प्रदान कर दी जायेगी। परन्तु यह घोषणा इतनी स्पष्ट थी कि इससे नवयुवक वर्ग में असन्तोष की लहर दौड़ गयी।

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