1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कारणों की विवेचना करें। 1857 Ke Pratham Swatantrata Sangram Ke Karno Ki Vivechna Karen
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1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कारणों की विवेचना करें। 1857 Ke Pratham Swatantrata Sangram Ke Karno Ki Vivechna Karen. Or, Discuss the Causes of the First War of Independence of 1857 in Hindi.

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भारत में लार्ड डलहौजी के शासन (1848-1856) की समाप्ति के पश्चात लार्ड कैनिंग के गवर्नर जनरल शीप में 1857 ई० में प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का बिगुल बजा।

इस संग्राम के शुरू होने के अनेक कारण थे, जिसमें कुछ प्रमुख निम्नांकित हैं-

  1. राजनीतिक कारण - 1757 ई. की प्लासी की लड़ाई के पश्चात् भारत के विभिन्न गवर्नर जनरलों में वारेन हेस्टिंग्स, वेलेसली और लॉर्ड डलहौजी ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना और इसके विस्तार और सुदृढीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजों ने मुगल सम्राटों के साथ तो दुर्व्यवहार करना प्रारम्भ किया ही, साथ ही देशी नरेशों का दमन और शोषण भी प्रारम्भ कर दिया। इस राजनीतिक परिवेश में लॉर्ड डलहौजी ने कम्पनी के अधिकार क्षेत्र से बाहर रह रहे भारत के स्वतन्त्र देशी राज्यों को हड़पने के लिए हड़पनीति का प्रयोग किया और सतारा, नागपुर, झाँसी, सँभलपुर, जयपुर, बघात और उदयपुर को कम्पनी राज्य में मिला लिया। डलहौजी को इस नीति के विरोध में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई और पेशवा के दत्तक पुत्र नाना साहबे ने तलवार उठा ली। असन्तोषजनक शासन-व्यवस्था और रूस का भारत पर आक्रमण करने की अफवाह ने तो संग्राम शुरू होने में आग में घी का काम किया।
  2. सामाजिक कारण - उच्च वर्ग की उपेक्षा, विदेशी सभ्यता का प्रचार, भारतीय सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप आदि जैसे सामाजिक कारणों से भारतीय जनमानस में ब्रिटिश नौकरशाही के विरुद्ध असन्तोष का भाव उत्पन्न हो गया। डलहौजी द्वारा भारतीयों के हित में लागू की गयी रेल, डाक, तार आदि व्यवस्था को भी भारतीयों ने अपने सामाजिक और भावात्मक जीवन पर कुठाराघात माना तथा इसका विरोध किया।
  3. धार्मिक कारण - अंग्रेजों ने यद्यपि भारतीय लोगों के धार्मिक जीवन में प्रत्यक्ष कोई हस्तक्षेप नहीं किया; तथापि अप्रत्यक्ष रूप से ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में सहायता पहुँचा कर धर्म में हस्तक्षेप करना प्रारम्भ कर दिया। पुनः ईसाई धर्म के प्रचारकों ने अपनी उदंडता का परिचय देते हुए हिन्दू और इस्लाम धर्म की निन्दा करना शुरू कर दी। गोद प्रथा का निषेध, सती प्रथा की समाप्ति और शिक्षण संस्थाओं द्वारा ईसाई धर्म के प्रचार के लिये उठाए गए कदमों ने भारतीय लोगों को अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध आवाज उठाने को मजबूर कर दिया।
  4. आर्थिक कारण - प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजी शासकों ने भारतीयों के आर्थिक शोषण के उद्देश्य से वृहत-उद्योगों की स्थापना की और घरेलू उद्योग धन्धों को नष्ट करना शुरू कर दिया। कुशल कारीगरों के हाथ की अंगुलियाँ काट ली गयीं और अन्य श्रमिकों तथा कारीगरों को भिन्न-भिन्न प्रकार की यातनायें दी जाने लगीं। इन सभी बातों के परिणामस्वरूप भारत में बेकारी की समस्या उत्पन्न हो गयी। पुनः मालगुजारी की ऊँची दरें जमीनदारों का आर्थिक शोषण, अकाल और महामारी आदि के प्राकृतिक प्रकोप के कारण तो भारतीयों की आर्थिक व्यवस्था ही चरमरा गयी।
  5. सैनिक कारण - भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और तात्कालिक कारण सैनिक मामलों से सम्बन्धित माना जाता है। भारतीय और अंग्रेजी सैनिकों के बीच पद, पदोन्नति, वेतन तथा भत्ता आदि में काफी भेदभाव था। भारतीय सैनिकों की तुलना में अंग्रेज सैनिकों को अधिक सुविधायें प्राप्त थीं। असन्तोषजनक सैनिक कानून ने तो भारतीय सैनिकों को उत्तेजित कर दिया। इसी बीच चर्बीवाले कारतूस की घटना ने भारतीय सैनिकों के असन्तोष में बारूद की ढेर में चिनगारी का काम किया। उनके बीच यह अफवाह फैला दी गई कि कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी मिली है। फलतः इनके क्रोध और असंतोष की ज्वाला फूट पड़ी जिसकी प्रचंड लपटें संपूर्ण भारत में फैल गई ।

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