भारत में औपनिवेशिक स्वराज्य देने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने लन्दन में इंगलैंड और भारत के राजनीतिज्ञों का प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवम्बर, 1930 ई० को बुलाया।
परन्तु, कांग्रेस ने साफ शब्दों में इसमें भाग नहीं लेने की घोषणा की। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के क्रम में गिरफ्तार किये गये लोगों में से महात्मा गाँधी और अन्य 19 काँग्रेसियों को 25 जनवरी, 1931 ई. को जेल से छोड़ दिया गया।
बाद में सर तेज बहादूर सप्रू और बी० एस. शास्त्री के प्रयासों के फलस्वरूप महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi) और लार्ड इरविन (Lord Irwin) के बीच 5 मार्च 1931 ई० को एक समझौता सम्पन्न हुआ।
इस समझौते के प्रावधानों के अनुसार यह निर्णय लिया गया कि सभी राजनीतिक सत्याग्रहियों को जेल से छोड़ दिया जाएगा और इसके बाद सत्याग्रह को बंद कर दिया जायेगा। इस समझौते में यह भी निर्णय लिया गया कि कांग्रेस (Congress) गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी।
परन्तु उग्रवादी विचारधारा वाले लोग गाँधी इरविन समझौते के मसौदों से सन्तुष्ट नहीं थे। ऐसी स्थिति में महात्मा गाँधी ने अपनी सूझ-बूझ और प्रभावशाली व्यक्तित्व का प्रयोग करते हुए सभी लोगों को इस समझौते के प्रति सकारात्मक रुख अपनाने के लिए सहमत करा लिया।