भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका की विवेचना करें। Bhartiya Rashtriya Aandolan Mein Mahatma Gandhi Ki Bhumika Ki Vivechna Karen
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भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका की विवेचना करें। Bhartiya Rashtriya Aandolan Mein Mahatma Gandhi Ki Bhumika Ki Vivechna Karen.

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भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (Indian National Movement) में गाँधीजी की भूमिका की विवेचना निम्नवत की जा सकती है -

चम्पारण आंदोलन (Champaran Movement) - गाँधीजी ने बिहार के चम्पारण जिले में नील की खेती में लगे किसानों की हालत सुधारने के लिए सत्याग्रह किया, जिनमें उनकी जीत हुई।

खेड़ा आंदोलन (Kheda Movement) - सन् 1916 ई० में गाँधीजी ने अकाल से ग्रस्त खेड़ा किसानों को कर के बोझ से छुटकारा दिलाने के उद्देश्य से कर नहीं दो आंदोलन का नारा लगाया और इसमें भी उन्हें सफलता मिली। इसी आंदोलन के क्रम में उनका परिचय सरदार वल्लभ भाई पटेल से हुआ।

अहमदाबाद आंदोलन (Ahmedabad Movement) - सन्1918 ई० में अहमदाबाद मिल-मजदूरों के आंदोलन में गाँधीजी ने मजदूरों की माँगों का समर्थन किया और आमरण अनशन पर बैठकर उनकी वेतन वृद्धि करवायी।

असहयोग आंदोलन (Non-Co-Operation Movement) - सन् 1919 ई० में महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार को शैतान कहकर पुकारा और उसके विरुद्ध असहयोग आंदोलन शुरू किया। रॉलेट ऐक्ट और जालियाँवाला बाग हत्या काण्ड की घटनाओं के कारण गाँधीजी बहुत ही अधिक उद्वेलित हो गये। उनके द्वारा छेड़े गये असहयोग आंदोलन में लोगों ने विदेशी उपाधियों का परित्याग किया, विदेशी वस्त्रों को होली खेली और स्वदेशी का नारा दिया, परन्तु 1922 के चौरी-चौरी को हिंसक घटना के बाद गाँधीजी ने अपना आंदोलन स्थगित कर दिया।

इस क्रम में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 6 वर्ष का कारावास दण्ड दिया गया। लेकिन स्वास्थ्य गिर जाने के कारण उन्हें कुछ महीनों के बाद जेल से छोड़ दिया गया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) - सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद से गाँधीजी ने हरिजनों द्वारा तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता आदि कार्यों में अपना बहुमूल्य समय व्यतीत किया। लेकिन 11 फरवरी 1930 ई. को कांग्रेस की कार्य समिति ने महात्मा गाँधी का सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने का अधिकार दिया।

इस आन्दोलन को शुरू करने के पूर्व गाँधीजी ने वायसराय इरविन से 11 माँगें रखीं जिनमें मदिरा निषेध, विनिमय दर में कमी तथा नमक कर का उन्मूलन आदि मुख्य थे।

परन्तु इरविन ने गाँधी के माँगों पर कोई ध्यान नहीं दिया। फलतः गाँधीजी ने दाण्डी यात्रा कर समुद्र तट पर नमक बनाया और इस प्रकार के कानून की अवज्ञा की।

16 मई 1930 को उन्हें गिरफ्तार कर यरवदा जेल में भेज दिया गया।

गाँधी-इरविन समझौता (Gandhi Irwin Pact) -  सर तेज बहादूर सप्रू और बी० इन० शास्त्री के प्रयत्नों के फलस्वरूप गाँधीजी और इरविन के बीच 15 मार्च 1931 को एक समझौता हुआ, जिसके प्रावधानों के अनुसार यह निर्णय लिया गया कि सरकार सभी राजनीतिक सत्याग्रहियों को छोड़ देगी, सत्याग्रह समाप्त कर दिया जायेगा और कांग्रेस गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगा।

लेकिन सरकार की नीति और साम्प्रदायिक मतभेद के कारण गाँधीजी को खाली हाथ ही लौटना पड़ा।

1942 का भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement 1942) - कांग्रेस ने 8 अगस्त 1942 के बंबई अधिवेशन में यह निर्णय लिया कि कांग्रेस गाँधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन चलायेगी।

इस घोषणा के बाद गाँधीजी ने 70 मिनट तक एक जोरदार भाषण दिया और जनता के सामने करो या मरो का नारा दिया।

लेकिन 9 अगस्त को सूर्योदय से पूर्व ही कांग्रेस कार्य समिति के सभी सदस्यों के साथ गाँधीजी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। गाँधीजी ने सरकार की दमनकारी नीति और हिंसात्मक कदम के विरोध में 10 फरवरी 1944 को 21 दिनों के लिए उपवास शुरू किया जिसमें उनकी हालत दयनीय हो गयी थी। 19 मई, 1944 को गाँधीजी को जेल से मुक्त कर दिया गया।

कैबिनेट मिशन (Cabinet Mission) - 23 मार्च 1946 को कैबिनेट मिशन लगभग 5 सप्ताह तक सभी प्रान्तीय गवर्नरों, वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् के सदस्यों, सभी दलों के नेताओं, अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों, प्रान्तों के प्रमुख और देशी राज्यों के प्रतिनिधियों से बातचीत की।

इन्हीं बातों के आलोक में उसने अपना प्रतिवेदन दिया। गाँधीजी ने मिशन का ध्यान राजगोपालाचारी के योजना की ओर आकृष्ट किया, परन्तु जिन्ना भारत के विभाजन और पाकिस्तान , निर्माण पर अड़े रहे।

अन्ततः कांग्रेस और लीग दोनों ने कैबिनेट मिशन योजना को स्वीकार कर लिया और जवाहर लाल के नेतृत्व में कांग्रेस ने अन्तरिम सरकार का निर्माण किया।

इस बीच मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के निर्माण के लिए सीधी कार्यवाही का नारा दिया, जिसके फलस्वरूप समूचा भारत हिन्दू-मुस्लिम दंगों की चपेट में आ गया। महात्मा गाँधी ने साम्प्रदायिक सद्भाव कायम करने के लिए सभी क्षेत्रों का दौरा किया।

माउण्ट बेटन योजना (Mountbatten Yojana) - माउण्ट बेटन 1947 के मार्च में भारत आये और कांग्रेस तथा लीग के नेताओं से विचार-विमर्श कर 3 जून 1947 को माउण्ट बेटन योजना का प्रारूप प्रकाशित किया।

इसी प्रारूप के आलोक में 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में एक विधेयक पारित कर यह स्पष्ट किया गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान नामक दो स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की जायेगी।

इसी प्रस्ताव के आलोक में भारत ब्रिटिश साम्राज्य के चंगुल से 15 अगस्त 1947 को मुक्त हुआ।

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है, कि महात्मा गाँधी ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की बागडोर 1919 से 1947 तक अपने हाथों में रखी और उन प्रयत्नों के फलस्वरूप सत्य और अहिंसा के साधनों द्वारा भारत को आजादी मिली।

30 जनवरी 1948 को बिड़ला भवन में नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) ने ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी।

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