घरेलू (Household) और कुटीर-उद्योग (Cottage-industry) स्थानीय स्तर पर चलाए जाते हैं।
इनमें अपेक्षाकृत कम पूँजी लगता है। गाँधीजी के अनुसार, ये भारतीय सामाजिक दशा के अनुकूल हैं। ये राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ये सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति तथा संतुलित क्षेत्रवार विकास के शक्तिशाली औजार हैं। ये उपभोक्ता वस्तुओं का निर्माण कम पूँजी से करते हैं।
इनसे बड़े स्तर पर रोजगार उपलब्ध होते हैं। इनसे बड़े शहरों में जनप्रवाह को रोकने में भी सहायता मिलती है।