सन् 1850 से 1914 तक के अवधि में वैसे उद्योगों को बढ़ावा दिया गया जो निर्यात करनेवाले सामानों का उत्पादन करते थे और जो राष्ट्र के लिए लाभदायक थे, जैसे- पटसन और चाय। साथ ही, वैसे माल का भी उत्पादन हुआ। जिसमें विदेशी प्रतिद्वंद्विता अधिक नहीं थी, जैसे-मोटा कपड़ा।
प्रथम विश्वयुद्ध (World War-I) के दौरान भारतीय उद्योगों को लाभ हुआ। उनमें उत्पादित सामान के लिए देश-विदेश में मंडी मिली, ठेके मिले तथा कच्चा माल कम मूल्य पर उपलब्ध हुआ। उत्पादित माल के मूल्य भी बढ़ गए।