सन् 1885 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना के पूर्व देश में कोई अखिल भारतीय राजनीतिक संस्था नहीं थी, यद्यपि क्षेत्रीय स्तर पर वर्गीय हितों की सुरक्षा के लिए अनेक संस्थाएँ कार्यरत थीं।
आर्स ऐक्ट और इलबर्ट बिल पर हुए विवाद एवं भारतीय प्रतिक्रिया को देखते हुए एक अखिल भारतीय राजनीतिक संगठन की आवश्यकता महसूस की गई।
अतः, इंडियन एसोसिएशन के सचिव आनंद मोहन बसु ने दिसंबर 1883 ई० में सभी राजनीतिक प्रतिनिधियों की सभा-इंडियन नेशनल काँफ्रेंस का आयोजन कलकत्ता में किया।
इसी समय एक उदारवादी सेवानिवृत्त अँगरेज पदाधिकारी ए. ओ. ह्यूम भी इस दिशा में प्रयासरत थे। ह्यूम का उद्देश्य भारत को क्रांतिकारी मार्ग पर जाने से रोकना था।
वह ऐसी संस्था बनाना चाहते थे जो अपनी माँगों के लिए शांतिपूर्ण संवैधानिक मार्ग अपना सके। अपनी संस्था को वह सुरक्षा कवच बनाना चाहते थे।
भारतीय नेता स्वयं कोई राजनीतिक संगठन बनाकर आरंभ से ही सरकार का कोपभाजन बनना नहीं चाहते थे।
इसलिए, भारतीयों ने ह्यूम की संस्था का उपयोग विद्युत-प्रतिरोधक के रूप में किया। ह्यूम के प्रयास का समर्थन प्रमुख भारतीय नेताओं ने भी किया।
ह्यूम ने लॉर्ड डफरिन एवं ब्रिटिश पार्लियामेंटरी कमेटी की सहमति प्राप्तकर इंडियन नेशनल यूनियन स्थापित करने की योजना बनाई।
5 दिसंबर 1885 ई० को इंडियन नेशनल काँग्रेस की स्थापना की घोषणा की गई। पहले इसका अधिवेशन पूना में होना था।
परंतु वहाँ प्लेग फैलने के कारण इसका अधिवेशन 28 दिसंबर 1885 को बंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में हुआ। इसकी अध्यक्षता व्योमेशचंद्र बनर्जी ने की।
काँग्रेस का आरंभिक उद्देश्य राष्ट्रीय एकता के लिए प्रयास करना, राजनीतिक और सामाजिक प्रश्नों पर प्रमुख नागरिकों एवं शिक्षित वर्गों के मतों की अभिव्यक्ति करना तथा सुधारों के लिए वायसराय और उनकी कौंसिल को स्मारपत्र देना था।