सन् 1857 ई० के विद्रोह के बाद देशी भाषा में प्रकाशित समाचारपत्रों ने सरकारी नीतियों की आलोचना करना आरंभ किया।
इसे रोकने तथा देशी समाचारपत्रों पर अंकुश लगाने के लिए वायसराय लिटन ने सन् 1878 ई० में वर्नाक्यूलर प्रेस ऐक्ट पारित किया।
इसके अनुसार, भारतीय समाचारपत्र ऐसा कोई समाचार प्रकाशित नहीं कर सकते थे, जिससे सरकार के प्रति दुर्भावना प्रकट हो।
ऐसा करनेवाले समाचारपत्रों के संपादकों से सरकार जमानत ले सकती थी तथा प्रेस को भी जब्त कर सकती थी। लिटन के इस कानून का तीव्र विरोध हुआ। इससे राष्ट्रवादी भावना बलवती हो गई।