प्राचीन काल में यूनान (Greek) सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राष्ट्र था। 15वीं शताब्दी में यह तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य के अंतर्गत आ गया।
18वीं शताब्दी से तुर्की की शक्ति कमजोर पड़ने लगी और उसे यूरोप का मरीज कहा जाने लगा। इससे यूनानियों में स्वतंत्र होने की लालसा जगी।
18वीं सदी के अंतिम चरण तक यूनान में राष्ट्रवादी धारणा प्रबल होने लगी। राष्ट्रवादी विकास में यूनानी चर्च, फ्रांसीसी क्रांति के प्रभाव तथा बौद्धिक आंदोलन का प्रमुख योगदान था।
कोरेंइस नामक दार्शनिक ने यूनानियों में राष्ट्र प्रेम (Patriotism) की भावना का प्रचार किया। कान्सटेंटाइन रीगास ने गुप्त समाचारपत्र प्रकाशित कर स्वतंत्रता की भावना प्रज्ज्वलित की।
हिटोरिया फिल्के नामक गुप्त क्रांतिकारी समिति यूनान को तुर्की से स्वतंत्र कराना चाहती थी। शक्तिशाली मध्यम वर्ग भी स्वतंत्रता की भावना जगा रहा था।
इन्हीं परिस्थितियों में सन् 1821 ई० में एलेक्जेंडर हिप्सलांटी के नेतृत्व में यूनानियों ने मोलडेविया में विद्रोह किया।
इसे तुर्की के सुलतान ने क्रूरतापूर्वक दबा दिया। इससे यूनानी हताश नहीं हुए। यूरोप के विभिन्न भागों से उन्हें सहायता मिलने लगी।
विख्यात अँगरेज कवि लॉर्ड बायरन ने यूनानियों की धन से सहायता की तथा स्वयं युद्ध में भाग लेने के लिए यूनान आए।
मोरिया में भी विद्रोह हुआ। इसे धार्मिक स्वरूप प्रदान कर सुलतान महमूद द्वितीय ने हजारों यूनानियों को मार डाला।
मिस्र के शासक पाशा महमत्त अली की सहायता से उसने विद्रोह को कुचल दिया। इस घटना से आक्रोशित होकर इंगलैंड, फ्रांस तथा रूस ने तुर्की के विरुद्ध संयुक्त कार्रवाई करने का निर्णय लिया।
नावारिनो की खाड़ी में हुए युद्ध में तुर्की और मिस्र की पराजय हुई। सन् 1829 ई० में तुर्की और रूस में एड्रियानोपुल की संधि हुई।
इसके द्वारा तुर्की के आधिपत्य के अंदर यूनान को स्वायत्तता देने का निर्णय लिया गया। यूनानियों ने इसे स्वीकार नहीं किया।
अतः, सन् 1832 ई० में कुस्तुनतुनिया की संधि द्वारा स्वतंत्र यूनान राष्ट्र का उदय हुआ। तुर्की शासन से इसे आजादी मिल गई।
बवेरिया के राजकुमार ऑटो यूनान के शासक बने। साथ ही यूनान पर से रूसी प्रभाव भी समाप्त हो गया।