जर्मनी (Germany) के एकीकरण में बिस्मार्क (Bismarck) की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उसका मानना था कि जर्मनी की समस्या का समाधान बौद्धिक भाषणों से नहीं, आदर्शवाद से नहीं, बहुमत के निर्णयों से नहीं, बल्कि प्रशा के नेतृत्व में रक्त और लौह की नीति से होगा।
अपनी नीति अनुसार, उसने कार्य आरंभ किया। चांसलर के रूप में बिस्मार्क ने सबसे पहले प्रशा की आंतरिक स्थिति सुदृढ़ करने का प्रयास किया।
आर्थिक और सैनिक सुधारों द्वारा प्रशा की स्थिति सुदृढ़ की गई। तत्पश्चात उसने युद्ध की नीति अपनाई। जर्मनी के एकीकरण के लिए उसने तीन युद्ध किए, जो इस प्रकार हैं :
1. डेनमार्क से युद्ध : शेल्सविग और हॉल्सटीन में जर्मन निवासी बड़ी संख्या में थे, परंतु डेनमार्क इनपर अपना प्रभाव बनाए रखना चाहता था।
अतः , बिस्मार्क ने डेनमार्क से युद्ध का निर्णय लिया। सन् 1864 ई० में हुए युद्ध में डेनमार्क की पराजय हुई।
शेल्सविग पर प्रशा ने अधिकार कर लिया। हॉल्सटीन पर ऑस्ट्रिया का प्रभाव स्वीकार किया गया।
2. सेडोवा का युद्ध : हॉल्सटीन के प्रश्न पर सन् 1866 ई० में ऑस्ट्रिया-प्रशा (सेडोवा का युद्ध) युद्ध हुआ। युद्ध में ऑस्ट्रिया की पराजय हुई।
हॉल्सटीन पर प्रशा का अधिकार हो गया। प्राग की संधि के अनुसार, जर्मन महासंघ भंग कर 22 उत्तरी जर्मन राज्यों का उत्तरी जर्मन महासंघ प्रशा के नेतृत्व में बनाया गया।
3. सीडान का युद्ध : यह युद्ध फ्रांस के साथ सन् 1870 ई० में हुआ। इसमें फ्रांस का सम्राट नेपोलियन तृतीय पराजित हुआ।
फ्रैंकफर्ट की संधि (1871) द्वारा जर्मनी के दक्षिणी राज्य उत्तरी जर्मन महासंघ में मिल गए।
इस प्रकार, तीन युद्धों ने जर्मनी का एकीकरण (Unification of Germany) पूरा कर दिया।