प्रथम यूटोपियन समाजवादी फ्रांस का (सेंट साइमन (St. Simon) था। उसका मानना था कि राज्य और समाज का पुनर्गठन इस प्रकार होना चाहिए।
जिससे शोषण (Exploitation) की प्रक्रिया समाप्त हो तथा प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार कार्य तथा प्रत्येक को उसके कार्य के अनुसार पारिश्रमिक मिले।
इसके लिए सभी लोगों को समन्वित रूप से काम करना चाहिए। उसका यह भी मानना था कि राज्य और समाज को निर्धन वर्गों के भौतिक और नैतिक उत्थान के लिए कार्य करना चाहिए।
यह कथन समाजवाद (Socialism) का मूलभूत नारा बन गया। चार्ल्स फूरिए औद्योगिकीकरण का विरोधी था।
वह चाहता था कि श्रमिकों को बड़े कारखानों की अपेक्षा छोटी औद्योगिक इकाइयों में काम करना चाहिए।
जिससे उनका शोषण नहीं हो सके। वह किसानों (Peasant) की स्थिति में भी सुधार लाना चाहता था। उसने किसानों की स्थिति को बेहतर बनाने की एक योजना रखी जो सफल नहीं हुई।
लुई ब्लाँ ने सुधारों की जो योजना प्रस्तुत की वह अधिक व्यावहारिक थी। उसका मानना था कि आर्थिक सुधारों को प्रभावशाली बनाने के लिए पहले राजनीतिक सोच और व्यवस्था में सुधार आवश्यक है।
इंगलैंड में रॉबर्ट ओवेन (Robert Owen) ने समाजवादी विचारधारा का प्रचार किया। उसने श्रमिकों के लिए अनेक सुधार कार्यक्रम चलाए।
उसने स्कॉटलैंड (Scotland) के न्यू लूनार्क में एक आदर्श कारखाना खोला और मजदूरों के आवास की व्यवस्था की।
उनके लिए अच्छा भोजन, शिक्षा और चिकित्सा की व्यवस्था की गई। वृद्धावस्था बीमा योजना लागू की गई, उचित मजदूरी दी गई, बाल मजदूरी समाप्त की गई तथा काम के घंटे घटाए गए।
इससे मुनाफा में वृद्धि हुई। अतः, उसका मानना था कि संतुष्ट श्रमिक ही वास्तविक श्रमिक हैं। इन समाजवादियों ने वर्गसंघर्ष के स्थान पर वर्गसमन्वय की विचारधारा पर बल दिया।