सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम निम्नांकित तीन कारकों पर निर्भर करते हैं, जो इस प्रकार है —
1. स्वयं की पहचान की चेतना— यदि लोग अपनी पहचान बनाए रखने के लिए अत्यधिक सचेष्ट हैं और इस क्रम में यदि उन्हें दूसरे की परवाह नहीं है, तो ऐसी स्थिति में सामाजिक विभेद की राजनीति का परिणाम सुखद हो ही नहीं सकता। अतः, यदि अपनी पहचान की चेतना के साथ दूसरे की पहचान की भी इज्जत की जाए, तो सामाजिक विभेद के परिणाम सुखद हो सकते हैं।
2. विभिन्न समुदायों की माँगों को राजनीतिक दलों द्वारा उपस्थित करने का तरीका— समुदायविशेष की कुछ माँगें राष्ट्रहित में नहीं होती और यदि उनकी माँगों को माने जाने के लिए शासन पर दबाव पड़ता है तो ऐसी स्थिति में विभेद की राजनीति का परिणाम कभी सुखद नहीं हो सकता, जैसे श्रीलंका सिर्फ सिंहलियों के लिए की मान्यता का दुष्परिणाम किसी से छिपा नहीं है।
3. माँगों के प्रति सरकार की सोच— सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम सरकार के विभिन्न समुदायों की माँगों के प्रति सोच पर भी निर्भर करते हैं। विभेद की राजनीति के अच्छे परिणाम के लिए यह आवश्यक है कि सरकार विभिन्न समुदायों की उचित माँगों का खयाल रखे। साथ-ही-साथ वैसी माँगें जिनसे दूसरे समुदायों के हितों पर चोट न पहुँचे, सरकार द्वारा मान लेने का परिणाम सदैव अच्छा ही होता है।