राष्ट्र का जीवन महिला और पुरुष दोनों के योगदान पर टिका होता है। आधी आबादी की शारीरिक और बौद्धिक शक्ति के बिना कोई राष्ट्र विकास और प्रगति में दूसरे राष्ट्र की तुलना में पिछड़ जाता है।
विकसित राष्ट्र इसलिए विकसित हैं, क्योंकि वे अपने मानव संसाधन का शत-प्रतिशत उपयोग करने में सक्षम हैं।
पुरुष-प्रधानता वाले विकासशील समाजों में भी महिलाएँ प्रगति और विकास के केंद्र में हैं। अंतर केवल यह है कि यहाँ महिलाओं के श्रम की कोई कीमत नहीं दी जाती है और उनके कार्य को महत्त्व नहीं दिया जाता है।
घरेलू काम-काज में अपनी संपूर्ण क्षमता से दिनभर श्रम करनेवाली महिलाओं के बिना पुरुष न तो स्वतंत्र उपार्जन कर सकेंगे, न ही संतति की परवरिश। कृषि, पशुपालन, कुटीर-उद्योग के क्षेत्रों में महिलाएँ आगे बढ़कर योगदान कर रही हैं।
आज महिलाएँ ओलंपिक प्रतिस्पर्धा में हैं। ये वकील, चिकित्सक, इंजीनियर, प्रबंधक, वैज्ञानिक हैं एवं संचार, कंप्यूटर के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दे रही हैं।