सामाजिक विभेदों का प्रभाव लोकतंत्र पर अवश्य पड़ता है। यह प्रभाव प्राय खतरनाक ही सिद्ध होता है।
सामाजिक विभेदों का लोकतंत्र पर दुर्भाग्यपूर्ण प्रभात यह है कि किसी-किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था (Democratic System) में सामाजिक विभेद व्यवस्था को इत्य प्रभावित कर देता है कि वहाँ सामाजिक विभेदों को ही राजनीति हावी हो जाती है।
जब सामाजिक विभेद राजनीतिक विभेद में परिवर्तित हो जाता है तब लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक हो जाता है।
ऐसा होने पर लोकतांत्रिक व्यवस्था का हो विखंडन जाता है। इसे उदाहरण के साथ समझाया जा सकता है।
यूगोस्लाविया (Yugoslavia) में धर्म और जात के आधार पर सामाजिक विभेद इस हद तक बढ़ गया कि वहाँ सामाजिक विभेद के राजनीति हावी हो गई। यह यूगोस्लाविया के लिए खतरनाक सिद्ध हुआ। यूगोस्लाविय कई खंड में बँट गया।
यूगोस्लाविया के उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक विभेद लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है। परंतु, इसे अक्षरशः स्वीकार नहीं किय जा सकता। अनेक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामाजिक विभेद रहते हुए भी देश के विघटन की स्थिति नहीं आती है।
सत्य तो यह है कि अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामाजिक विभेद रहते ही हैं। यह खतरनाक नहीं बने, इसके लिए कुछ सावधानियाँ बरतने की आवश्यकता है। भारत और बेल्जियम में सामाजिक विभेद रहते हुए भी यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा नहीं है।