भारतीय संघीय व्यवस्था में एकात्मक व्यवस्था के निम्नलिखित लक्षण मौजूद हैं—
1. यहाँ शक्तिशाली केंद्रीय सरकार की स्थापना की गई है।
2. संविधान में शासन के सभी विषयों को तीन सूचियों में विभक्त किया गया है— संघ सूची (इसमें 97 विषय हैं, जो संघ सरकार के अंतर्गत हैं), राज्य सूची (इसमें 66 विषय हैं, जो राज्य सरकार के अंतर्गत हैं) और समवर्ती सूची (इसमें 47 विषय हैं, जिनपर संघ सरकार की प्राथमिकता और प्रधानता स्वीकार की गई है)। अवशिष्ट अधिकार भी संघ सरकार को ही दिया गया है।
3. यहाँ दोहरी नागरिकता नहीं है, बल्कि एक ही नागरिकता हैं।
4. सभी राज्यों के लिए एक ही संविधान है और राज्य इस संविधान में संशोधन या परिवर्तन नहीं कर सकते हैं।
5. संपूर्ण देश के लिए एक प्रकार की न्यायिक व्यवस्था है।
6. संकटकाल में संविधान एकात्मक हो जाता है। जोशी ने ठीक ही कहा है, भारतीय संविधान की रचना साधारण काल में संघात्मक रूप में तथा संकटकाल में एकात्मक रूप में काम करने के लिए की गई है।
7. संघ सरकार शक्तिशाली बनाई गई है। वह राज्य की सरकारों पर पर्याप्त नियंत्रण रखती है। राज्यों के सीमा-परिवर्तन और उनके नामों में हेर-फेर करने का अधिकार भी संसद को ही दिया गया है।
इससे स्पष्ट है कि भारतीय संविधान का ढाँचा संघात्मक है, लेकिन इसमें एकात्मक व्यवस्था के भी अनेक महत्त्वपूर्ण लक्षण मौजूद हैं।