नेपाल में लोकतंत्र की वापसी पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिए। Nepal Main Lokatantra Ke Vapse Par Ek Sankshipt Nibandh Likhiye.
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नेपाल में लोकतंत्र की वापसी पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिए। Nepal Main Lokatantra Ke Vapse Par Ek Sankshipt Nibandh Likhiye. Or, Write a Short Essay on Nepal's Return to Democracy.

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भारतीय लोकतंत्र से प्रभावित होकर हमारा पड़ोसी देश नेपाल (Nepal) भी लोकतंत्र की डगर पर चल पड़ा।

पहले वहाँ राजतंत्र था। सारी शक्ति राजा के हाथों में केंद्रित थी। वहाँ राजा को देवतातुल्य समझा जाता था।

परंतु, आधुनिक विश्व में लोकतंत्र (Democracy) का बोलबाला है, भला नेपाल कब तक अपने को इससे अछूता रखता।

वहाँ 1990 के दशक में लोकतंत्र कायम हुआ। इसके बावजूद राजा वीरेंद्र स्वयं औपचारिक रूप से राज्य के प्रधान बने रहे। परंतु, वास्तविक सत्ता जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास थी।

स्वयं राज्य का औपचारिक प्रधान बने रहने के बावजूद राजा वीरेंद्र ने वहाँ लोकतंत्र के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया था।

परंतु, दुर्भाग्यवश शाही खानदान के एक रहस्यमय कत्लेआम में राजा वीरेंद्र की हत्या कर दी गई। इसके बाद ज्ञानेंद्र नेपाल के राजा बने। वे लोकतांत्रिक शासन के खिलाफ थे।

परिणामस्वरूप, उन्होंने सन् 2002 में संसद को भंग कर पूर्ण राजशाही की घोषणा कर दी। उन्हें यह विश्वास था कि विभिन्न राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं में इतना मतभेद है कि यदि वे राजशाही के विरुद्ध संघर्ष करना भी चाहें तो उन्हें जनसमर्थन नहीं मिलेगा।

राजा ज्ञानेंद्र द्वारा राजशाही की घोषणा एवं निर्वाचित सरकार की बर्खास्तगी से नेपाली जनता एवं नेपाल के विभिन्न राजनीतिक दलों की बौखलाहट काफी बढ़ गई।

परिणामस्वरूप, राजनीतिक दलों ने आपस में समझौता कर सात दलों का गठबंधन बनाया। बाद में चलकर माओवादी भी सात दलों के गठबंधन में शामिल हो गए।

इस गठबंधन के नेतृत्व में लाखों की संख्या में जनता लोकतंत्र के समर्थन एवं राजशाही के विरोध में सड़कों पर उतर आई।

6 अप्रैल 2006 से नेपाली जनता लोकतंत्र की वापसी के लिए सघन रूप से जनसंघर्ष करने के लिए बाध्य हो गई।

अंततः, जनता द्वारा चलाए गए जनसंघर्ष के परिणामस्वरूप राजशाही को मुँह की खानी पड़ी और सात दलों के गठबंधन एवं जनता की जीत हुई।

बाध्य होकर राजा ज्ञानेंद्र को 24 अप्रैल 2006 को संसद को पुनः बहाल कर सत्ता सात दलों के गठबंधन को सौंपने की घोषणा करनी पड़ी।

30 अप्रैल 2006 को गिरिजा प्रसाद कोइराला को नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई।

अतः, स्पष्ट है कि लोकतंत्र की वापसी के लिए नेपाली जनता को कठिन जनसंघर्ष करना पड़ा और उसमें लोकतंत्र की जीत और राजशाही की करारी हार हुई।  

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