अलाउद्दीन खिलजी के बारे में लिखें। Alauddin Khilji Ke Bare Mein Likhen.
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अलाउद्दीन खिलजी के बारे में लिखें। Or, Alauddin Khilji Ke Bare Mein Likhen. Or, Write About Alauddin Khilji in Hindi.

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अलाउद्दीन (Alauddin) के बचपन का नाम अली या गुरशप था। सुल्तान बनने से पहले अलाउद्दीन अमीर-ए-तुजुक के पद पर था। 

20 अक्टूबर 1296 को अलाउद्दीन ने दिल्ली (Delhi) में प्रवेश किया, जहां बलबन के लाल महल में उसने अपना राज्य अभिषेक करवाया दिल्ली का सुल्तान (Emperor of Delhi) बना और सिकंदर सानी की उपाधि धारण की। 

  • साम्राज्य का विस्तार : अलाउद्दीन की आकांक्षाएं साम्राज्यवादी थी। उत्तर भारत के राज्यों के प्रति उसकी नीति राज्य विस्तार की थी, जबकि दक्षिण भारत में वह राज्यों से अपनी अधीनता स्वीकार करवाकर और वार्षिक कर लेकर ही संतुष्ट था। 
  • अलाउद्दीन का राजत्व सिद्धांत : अलाउद्दीन ने धर्म (Religion) और धार्मिक वर्ग को शासन में हस्तक्षेप नहीं करने दिया। उसने खलीफा से अपने सुल्तान के पद की स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं समझी। इस प्रकार उसने शासन में ना तो इस्लाम के सिद्धांतों का सहारा लिया ना उलेमा वर्ग की सलाह ली और ना ही खलीफा के नाम का सहारा लिया। अलाउद्दीन निरंकुश राजतंत्र में विश्वास करता था। 
  • प्रशासनिक व्यवस्था : अलाउद्दीन व्यक्ति की योग्यता पर बल देता था। उसने गुप्तचर विभाग को संगठित किया। इस विभाग का मुख्य अधिकारी वरीद-ए-मुमालिक था। 

अलाउद्दीन का मंत्रिपरिषद -

  1. दीवाने वजारत - वजीर (मुख्यमंत्री)
  2. दीवान  इंशा - शाही आदेशों का पालन करवाना।
  3. दीवाने आरिज - सैन्य मंत्री
  4. दीवाने रसातल - विदेश 
  • विभाग राजस्व (कर) एवं लगान व्यवस्था : अलाउद्दीन ने लगान पैदावार का 1/2 भाग निर्धारित किया। वह पहला सुल्तान था, जिसने भूमि (Land) को नाप कर लगान वसूल करना प्रारंभ किया। 

इसके लिए विस्वा को एक इकाई माना गया। वह लगान को गले के रूप में लेना पसंद करता था। 

अलाउद्दीन ने दो नए कर लगाए - 

  1. मकान कर एवं
  2. चराई कर। 

अपनी व्यवस्था को लागू करने के लिए अलाउद्दीन ने एक पृथक विभाग दीवान-ए-मुस्तखराज स्थापित किया।

  • खालसा भूमि (सुल्तान की भूमि) : इस भूमि से लगान राज्य द्वारा वसूला जाता था। 
  • सैन्य व्यवस्था : अलाउद्दीन ने केंद्र में एक बड़ी और स्थाई सेना रखी जिसे वह नगद वेतन देता था। ऐसा करने वाला वह दिल्ली का पहला सुल्तान था।

केंद्र में अनुभवी सेनानायक थे, जिन्हें कोतवाल कहा जाता था। सेना की इकाइयों का विभाजन हजार, सौ और दस पर आधारित था, जो खानों, मालिक, अमीरों और सिपहसलारो के अंतर्गत थे।

दस हजार की सैनिक टुकड़ियों को तुमन कहा जाता थाl अलाउद्दीन ने सैनिकों का हुलिया लिखने और घोड़ों को दागने की नवीन प्रथा प्रारंभ की। 

  • बाजार व्यवस्था : अलाउद्दीन की बाजार व्यवस्था का मुख्य कारण सैनिकों के वेतन में कमी करना ना होकर वस्तुओं के मूल्य को बढ़ने से रोकना था।  

अलाउद्दीन ने प्रत्येक वस्तुओं के लिए अलग-अलग बाजार निश्चित किए। गल्ले के लिए मंडी, कपडे के लिए सराय -ए-आदिल घोड़ा, गुलाम हुआ मवेशी बाजार एवं सामान्य बाजार।

सभी व्यापारियों को सहना -ए-मंडी के दफ्तर में अपने को पंजीकृत कराना पड़ता था। केवल पंजीकृत व्यापारी (Registred Traders) ही किसानों से गला खरीद सकते थे। सट्टेबाजी, चोरबाजारी, कानून को भंग करने वालों को कठोर दंड दिया जाता था।

बहुमूल्य वस्तु खरीदने के लिए दीवाने-रियासत या सहना-ए-मंडी को की आज्ञा लेनी पड़ती थी। अन्य तथ्य : अलाउद्दीन ने कुतुबमीनार के निकट अलाई दरवाजा ,सीरी नामक शहर, होज-ए -अलाई तालाब तथा हजार खंभा महल का निर्माण करवाया था। उसने डाक व्यवस्था लागू की थी।

उसका अंतिम अधिनियम परवाना नवीस (परमिट देने वाला अधिकारी) की नियुक्ति की थी। अलाउद्दीन ने खम्स (युद्धों में लूट का हिस्सा) के 4/5 भाग पर राज्य का नियंत्रण एवं  1/5 भाग पर सैनिकों का नियंत्रण कर दिया। अलाउद्दीन की मृत्यु 5 जनवरी 1316 ईस्वी को  हुई थी।

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