पुस्तकालय पर निबंध। Pustakalaya Par Nibandh
पुस्तक और आलय इन्हीं दो शब्दों के सुलभ सम्मिश्रण से पुस्तकालय (Library) शब्द की उत्पत्ति हुई है। पुस्तकालय में उपन्यास, कहानी, नाटक, कविता और आलोचना सम्बन्धी पुस्तकें रहती हैं।
पुस्तकालय तीन प्रकार के होते हैं (There are three types of Libraries) —
- व्यक्तिगत पुस्तकालय (Personal Library)
- राजकीय पुस्तकालय (State Library) तथा
- सार्वजनिक पुस्तकालय (Public Library)
व्यक्तिगत पुस्तकालय किसी व्यक्ति विशेष द्वारा संचालित होता है। इस उपयोग कोई विशेष व्यक्ति तथा उसके परिवार के सदस्य ही करते हैं।
राजकीय पुस्तकालय में सरकारी कर्मचारियों के हितार्थ पुस्तकें रहती हैं।
सार्वजनिक पुस्तकालय सर्वसाधारण के अधीन रहता है। सामान्यतः प्रत्येक गाँव या शहर में सार्वजनिक पुस्तकालय स्थापित रहता है।
पुस्तकालय के प्रबन्ध के लिए प्रबन्ध-समिति गठित होती है। इस समिति में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष, मन्त्री, कोषाध्यक्ष और आय-व्यय निरीक्षक आदि निर्वाचित होते हैं।
पुस्तकालय ज्ञान-प्रसार का उत्तम साधन है। शिक्षा (Education) के प्रचार और प्रसानर में पुस्तकालय का अपूर्व योगदान है। पुस्तकालय में विद्यालय (School) या महाविद्यालय (University) की पाठ्य-पुस्तकें भी संचित रहती हैं। इससे गरीब विद्यार्थी अपना काम चलाते हैं।
पुस्तकालय में दैनिक, साप्ताहिक, मासिक और पाक्षिक पत्र-पत्रिकाएँ आती हैं। इन पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन कर हम ज्ञानार्जन करते हैं।
पहले भारतवर्ष में नालन्दा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे महाविद्यालयों में सम्पन्न, सुसज्जित पुस्तकालय और सिन्हा पुस्तकालय, पटना, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय पुस्तकालय और कलकत्ता के राष्ट्रीय पुस्तकालय विशेष प्रसिद्ध पुस्तकालय है।
आज भी कतिपय ग्राम ऐसे हैं, जहाँ पुस्तकालय नहीं है। कुछ पुस्तकालय सहयोग-शून्यता के कारण बन्द होते जा रहे हैं।
अतः पुस्तकालय के संचालकों को आपसी मतभेद भुला देना चाहिए।
हमारे देश में इन दिनों चल-पुस्तकालय की भी व्यवस्था की जा रही है। पुस्तकाध्यक्षों को प्रशिक्षण देने का प्रबन्ध भी किया गया है, लेकिन ये सभी काम धीमी गति से हो रहे हैं।
पुस्तकालयों में पुस्तकों का चुनाव अच्छे ढंग से होना चाहिए। बालकों तथा महिलाओं की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखना चाहिए। पुस्तकों के उपयोग पर भी सबको ध्यान रखना चाहिए।