होली पर निबंध लिखें। Holi Par Nibandh Likhen
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होली पर निबंध लिखें। Holi Par Nibandh Likhen. Or, Write an Essay on Holi in Hindi.

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Essay on Holi in Hindi | होली पर निबंध

होली (Holi) रंग और गुलाल लेकर आती है। यह आनंद, उल्लास, मस्ती और मौज का त्योहार है।

होली का संबंध होलाका कर्म से है जो कालांतर में होलाका से कुछ भिन्न कर्म का द्योतक हो गया है।

प्राचीनकाल में होलाका (होला ) एक कर्मविशेष था जो स्त्रियों के सौभाग्य के लिए संपादित होता था। इस कर्मविशेष में रंगों की प्रधानता थी, अतएव इसी का विकास होली नामक पर्व में हुआ।

होली चैत मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है। इसके एक दिन पूर्व फाल्गुन पूर्णिमा की रात्रि में होलिकादहन होता है।

किसी-किसी साल होलिकादहन के बाद दूसरे दिन होली मनाई जाती है। होलिकादहन एक निश्चित स्थान पर होता है। होलिकादहन (Holika Dahan) का समय भी निश्चित होता है।

निश्चित समय पर लोग होलिकादहनस्थल पर एकत्र होते हैं। होलिका के प्रतीकस्वरूप एकत्र किए गए लकड़ी-गोयठे और घास-पात में आग लगाई जाती है।

आग लगते ही लोग ढोल पर थाप दे-देकर होली गाने लगते हैं। अजीब आनंद का वातावरण छा जाता है वहाँ! वहाँ हँसी-ठिठोली भी खूब होती है।

सामाजिक वर्जनाएँ (Social Taboos) टूटकर बिखरने लगती हैं। स्वच्छंदता रस-तरंगों पर सवार होकर नृत्यशील हो उठती है।

नारदपुराण में दैत्यराज हिरण्यकशिपु और प्रह्लाद की कथा का वर्णन है। होलिका हिरण्यकशिपु की बहन थी।

उसके पास एक जादुई चुनरी थी जिसके चलते वह आंग से जल नहीं सकती थी । हिरण्यकशिपु के कहने पर प्रह्लाद को मारने के लिए वह प्रह्लाद को आग में लेकर बैठी।

भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जादुई चुनरी के बावजूद जलकर मर गई और प्रह्लाद आग से सुरक्षित निकल आया।

होलिकादहन इसी पौराणिक प्रसंग से जुड़ा है। भविष्यपुराण के अनुसार, राजा रघु के राज्य में धुँधि नामक एक राक्षसी थी।

भगवान शंकर ने उसे शाप दिया था कि उसकी मृत्यु बालकों के उत्पात से ही होगी। बात सत्य निकली। उसकी मृत्यु बालकों के उत्पात से ही हुई।

पंजाब की फुलैंडी इसी धुँधि की मृत्यु से जुड़ी है। इस दिन पंजाब और हरियाणा में बच्चों को ऊधम मचाने की पूरी छूट है।

रंग, गुलाल-भरा वस्त्र और रंग- अबीर से रँगे-पुते मुसकराते-हँसते चेहरे—यही है इस पर्व की पहचान। घर-घर में तरह-तरह के पकवान पकते हैं।

सभी एक-दूसरे से आनंदविभोर होकर मिलते हैं। इस दिन कोई किसी का शत्रु नहीं होता। ऐसा मस्त पर्व (उत्सव) खोजना मुश्किल है।

होली स्वच्छंदता का पर्व नहीं है, यह एक सामाजिक पर्व (Social Festival) है, जिसकी स्वच्छंदता पर समाज का अंकुश होना अनिवार्य है।

होली जीवन की नीरसता में सरसता घोलती है। यह हमारी कुंठाओं और वर्जनाओं को तोड़ती है। यह हममें जीने की नई ऊर्जा भरती है।

होली के दिन कई बार अनुचित छेड़छाड़, मदिरापान और लड़कियों के साथ छेड़खानी करने के चलते मारपीट हो जाती है।

रंग और अबीर की होली खून की होली में बदल जाती है। इस दिन मदिरापान पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए। सारे संघर्षों की जड़ यह मदिरा (शराब) ही है।

यदि होली उपर्युक्त दोष से मुक्त हो जाए, तो शायद ही कोई दूसरा पर्व इसकी बराबरी कर सके।

होली हुड़दंग का नहीं, उल्लास का पर्व है; यह नशा का नहीं, आनंद का पर्व है।

होली का रंग तभी अच्छा लगेगा जब हम आत्मा की पवित्रता के रंग में रँगे होंगे। जीवन में रस का संचार करनेवाली होली का अभिनंदन तभी सार्थक होगा।

जब हम संप्रदाय, जाति, धर्म तथा ऊँच-नीच की भावना और विद्वेष से ऊपर उठकर सबको गले लगाने के लिए तैयार होंगे।

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होली पर निबंध। Holi Par Nibandh

भारत उत्सवों का देश (Country of Festivals) है। होली (Holi) सबसे अधिक रंगीन और मस्त उत्सव है। इस दिन भारतवर्ष में सभी फक्कड़ता और मस्ती की भाँग में मस्त रहते हैं।

होली वाले दिन लोग छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, गरीब-अमीर, ग्रामीण-शहरी का भेद भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं, तथा परस्पर गुलाल मलते हैं।

होली के मूल में हिरण्यकश्यपु के पुत्र प्रह्लाद और होलिका (Holika) का प्रसंग आता है। हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को मार डालने के लिए होलिका को नियुक्त किया था।

होलिका के पास एक ऐसी चादर थी, जिसे ओढ़ने पर व्यक्ति आग के प्रभाव से बच सकता था। होलिका ने उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में ले लिया और अग्नि में कूद पड़ी वहाँ दैवी चमत्कार हुआ।

होलिका आग (Fire) में जलकर भस्म हो गई, परंतु प्रह्लाद का बाल भी बाँका न हुआ। तब से लेकर आज तक होलिका दहन की स्मृति में होली का पर्व मनाया जाता है।

होली का उत्सव दो प्रकार से मनाया जाता है (Holi is Celebrated in Two Ways)

कुछ रात्रि में लकड़ियाँ, झाड़-झंखाड़ एकत्र कर उसमें आग लगा देते हैं, और समूह में इकट्ठे होकर गीत गाते हैं। आग जलाने की यह प्रथा होलिका दहन की याद दिलाती है। ये लोग रात को आतिशबाजी आदि चलाकर भी अपनी खुशी प्रकट करते हैं।

होली मनाने की दूसरी प्रथा आज सारे समाज में प्रचलित है। होली वाले दिन लोग प्रात:काल से दोपहर 12 बजे तक अपने हाथों में लाल, हरे, पीले रंगों का गुलाल लिए हुए परस्पर प्रेमभाव से गले मिलते हैं।

इस दिन गली-मुहल्लों में ढोल-मजीरे बजते सुनाई देते हैं। कोई नीले-पीले वस्त्र लिए घूमता है, तो कोई जोकर की मुद्रा में मस्त है।

बच्चे पानी के रंगों में एक-दूसरे को नहलाने का आनंद लेते हैं। बच्चे पिचकारियों से भी रंग की वर्षा करते दिखाई देते हैं।

परिवारों में इस दिन लड़के-लड़कियाँ, बच्चे-बूढ़े, तरुण-तरुणियाँ सभी मस्त होते हैं। प्रौढ़ महिलाओं की रंगबाजी बड़ी रोचक बन पड़ती है। इस प्रकार यह उत्सव मस्ती और आनंद से भरपूर है।

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