बेरोजगारी (Unemployment), खाद्यान्न की आसमान छूती कीमतें, खाद्यान्न का घोर अभाव, खाद्य तेल की किल्लत आदि ने महँगाई के बोझ को असहनीय बना दिया।
1972-73 में मानसून की असफलता से देश की आर्थिक स्थिति और भी गंभीर हो गई। सरकार की बढ़ती हुई पाबंदियों ने जनता के असंतोष और आक्रोश को और भी बढ़ा दिया।
सरकार की गलत नीतियों को इसके लिए उत्तरदायी मानकर जनता विरोध में खड़ी हो गई। इस आक्रोश और विरोध की अभिव्यक्ति का प्रारंभ बिहार से हुआ।
सन् 1974 ई० में बिहार के छात्रों ने इसे व्यापक छात्र-आंदोलन का रूप दे दिया। इसी समय पटना के गाँधी मैदान में विशाल जनसमूह को जयप्रकाश नारायण ने संबोधित किया।
छात्रों के आग्रह पर इस अहिंसक आंदोलन के नेतृत्व की बागडोर जयप्रकाश नारायण ने स्वीकार कर ली।
केंद्रीय स्तर पर काँग्रेस का विकल्प प्रस्तुत करने के लिए सभी गैर-काँग्रेसी दल एकजुट हो गए और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इस आंदोलन को राष्ट्रव्यापी स्वरूप प्राप्त हो गया।