जब हम इतिहास के पन्नों को उलटते हैं तब हमें इस बात का ज्ञान हो जाता है कि लोकतंत्र (Democracy) की स्थापना के लिए अनेक देशों में जनांदोलन हुए हैं। दक्षिणी अमेरिका का एक देश है चिली।
चिली (Chile) में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था फल-फूल रही थी। वहाँ के तत्कालीन राष्ट्रपति आयेंदे की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में पूरी आस्था थी।
परंतु, 11 सितंबर 1973 को वहाँ सैनिक शासन स्थापित हो गया और लोकतंत्र समाप्त हो गया। यहाँ तक कि आयेंदे की हत्या भी कर दी गई।
शासन की बागडोर जनरल ऑगस्तो पिनोशे ने हथिया ली। चिली 17 वर्षों तक सैनिक शासन से त्रस्त रहा। पिनोशे 17 वर्षों तक राष्ट्रपति पद पर बना रहा।
जनता में अंदर-ही-अंदर सैनिक शासन के विरुद्ध आग सुलग रही थी। स्वाभाविक रूप से पिनोशे के सैनिक शासन का तो अंत होना ही था।
पिनोशे को पूर्ण विश्वास था कि जनता उसके साथ है। इसी विश्वास से सन् 1988 ई॰ में उसने जनमत-संग्रह कराने का निर्णय लिया।
उसे विश्वास था कि जनता उसके शासन को जारी रखने के पक्ष में मतदान करेगी ही। परंतु, पासा पलट गया। जनता तो पहले से ही मौके की तलाश कर रही थी।
वह अपनी लोकतांत्रिक परंपरा को भला कैसे भूल सकती थी और जब सुनहरा अवसर मिला तो भला वह चूकती कैसे?
चिली की जनता ने पिनोशे की सरकार को नकार दिया और देश ने लोकतंत्र की वापसी में सफलता प्राप्त कर ली।
सन् 2006 ई० के जनवरी माह में पिनोशे सरकार की तानाशाही की शिकार समाजवादी नेता मिशेल बैशेले लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की राष्ट्रपति निर्वाचित हो गई। यह लोकतंत्र में जनता की आस्था का द्योतक है।