दो-अस्पा एवं सिह-अस्पा प्रथा जहांगीर (Jahangir) ने चलाई थी।
इसके अंतर्गत बिना जात पद बढ़ाए ही मनसबदारों को अधिक सेना रखना पड़ता था।
(i) दो-अस्पा- इसमें मनसबदारों को अपने ‘सवार' पद के दोगुने घोड़े रखने पड़ते थे।
(ii) सिह-अस्पा- इसमें मनसबदारों को अपने सवार पद के तीन गुने घोड़े रखने होते थे।