हिंदू धर्म के एकेश्वरवादी मत का प्रचार करने के लिए 1815 ई. में राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) ने अपने युवा समर्थकों के सहयोग से आत्मीय सभा की स्थापना की।
उन्होंने मूर्तिपूजा की आलोचना की और सप्रमाण यह विचार व्यक्त किया कि हिंदुओं के सभी प्राचीन मौलिक धर्म ग्रंथों ने एक ब्रह्म का उपदेश दिया है।
इसके समर्थन में उन्होंने वेदों और पांच मुख्य उपनिषदों का बंग्ला भाषा में अनुवाद किया।