1906 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी (Dadabhai Naoroji) की थी ।
वर्ष 1906 के कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी में विभाजन की नौबत आ गई थी, लेकिन दादाभाई नौरोजी के अध्यक्ष बनने से संभावित विभाजन फिलहाल टल गया। दादाभाई नौरोजी को लगभग सभी राष्ट्रवादी एक सच्चा देशभक्त मानते थे।
राजनीतिक विचारों से दादाभाई पूर्ण राजभक्त थे। वह समझते थे कि भारत में अंग्रेजी राज्य से बहुत लाभ हुआ और वह इस साहचर्य (Association) के सदा बने रहने में अभिरुचि रखते थे।
राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में ही पहली बार दादाभाई ने स्वराज्य की मांग की।