दक्षिण अफ्रीका से 1915 में लौटने के बाद गांधीजी ने भारत में अपना प्रथम सफल सत्याग्रह बिहार के चंपारण (Champaran) जिले में वर्ष 1917 में किया।
चंपारण के एक किसान राजकुमार शुक्ल (Rajkumar Shukla) ने गांधीजी से लखनऊ में भेंट की और उनसे चंपारण आने का आग्रह किया था।
19वीं सदी के आरंभ में गोरे बागान मालिकों ने चंपारण के किसानों से एक अनुबंध के आधार पर यह विनिश्चित करा लिया था कि उन्हें अपनी जमीन के 3/20वें भू-भाग पर नील की खेती करना अनिवार्य है, जिसे तिनकठिया पद्धति के नाम से जाना जाता था ।
गोरे बागान मालिकों ने किसानों की मजबूरी का फायदा उठाकर उन्हें अनुबंध से मुक्त करने के लिए लगान एवं अन्य गैर-कानूनी अब्वाबों (करों) की दर मनमाने ढंग से बढ़ा दी। किसानों के इसी उत्पीड़न के विरोध में गांधीजी ने चंपारण सत्याग्रह प्रारंभ किया था।