31 दिसम्बर 1600 को इंग्लैंड के कुछ व्यापारियों ने लंदन में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) की स्थापना की थी।
इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम (Elizabeth-I) ने इस कंपनी को पंद्रह वर्षों के लिए पूरब (एशिया) के देशों के साथ व्यापार करने का एकाधिकार दिया। इसका मतलब था, कि इंग्लैंड की केवल इसी कंपनी को भारत से व्यापार करने का अधिकार था।
इग्लैंड का कोई अन्य व्यक्ति या व्यापारी समूह भारत के साथ व्यापार नहीं कर सकता था।
इस तरह यह कंपनी भारत से चीजें खरीदकर यूरोप में ज्यादा कीमत पर बेच सकती थी। लेकिन जरा सोचिये कि क्या ईस्ट इंडिया कंपनी को चुनौती देनेवाली अन्य दूसरी यूरोपीय कंपनियाँ नहीं थीं।
पुर्तगाल तो पहले से ही भारत के साथ व्यापार कर लाभान्वित हो रहा था।
इसके साथ ही हॉलैंड, फ्रांस एवं डेनमार्क जैसे देशों की व्यापारिक कंपनियों के हित भी इंग्लैंड की ईस्ट इंडिया कंपनी से टकराने लगे।
सारी कंपनियां एक जैसी चीजें जैसे (बारीक सूती कपड़े, रेशम, मलमल, नील, शोरा आदि खरीदती थीं। यूरोप में सूती कपड़ों का उत्पादन बिल्कुल ही नहीं होता था।
वहां सूती कपड़ों का उपयोग गर्मियों में किया जाता था; तथा ऊनी वस्त्रों के अन्दर अस्तर के रूप में जाड़ों में भी किया जाता था।
इससे ऊनी कपड़े पहनने में ज्यादा मुलायम और आरामदेह हो जाते थे। पूरे यूरोप में भारत के मसालों की बहुत ज्यादा मांग थी।
ठंडा प्रदेश (Cold Region) होने के कारण यूरोप के लोगों के भोजन में मांस का उपयोग काफी होता था।
जिसे स्वादिष्ट बनाने के लिए तथा मांस को लंबे समय तक उपयोग में लाए जाने योग्य बनाए रखने के लिए इन मसालों का उपयोग किया जाता था।