फ्रांसीसी क्रांति के स्वरूप का वर्णन करें। Francisi Kranti Ke Swaroop Ka Varnan Karen.
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फ्रांसीसी क्रांति के स्वरूप का वर्णन करें। Or, Francisi Kranti Ke Swaroop Ka Varnan Karen.

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फ्रांसीसी क्रांति(French Revolution) के स्वरूप के सम्बन्ध में कहा जाता है कि यह पूर्णरूप से निश्चयात्मक थी, अर्थात् क्रांति की गति और दिशा वही थी जो लगभग सभी क्रांतियों की होती है। फिर भी किसी क्रांति के स्वरूप को निश्चित करने के पहले यह देखना आवश्यक होता है कि उस क्रांति के क्या कारण थे, उस क्रांति में समाज के किस वर्ग के लोगों ने मुख्य रूप से भाग लिया और उस क्रांति से किस वर्ग के लोगों को अधिक लाभ हुआ। कई इतिहासकारों ने सन् 1789 ई० की फ्रांसीसी क्रांति को एक बुर्जुआई (मध्यम वर्गीय) क्रांति कहा है। उनके अनुसार इस क्रांति ने एक विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग की जगह दूसरे विशेषाधिकारी वर्ग का शासन स्थापित कर दिया। फ्रांस में मध्यमवर्ग के पास पूँजी की कमी नहीं थी। ये यदा कदा सरकार को कर्ज देने का काम भी करते थे, लेकिन सत्ता में इनकी कोई भी सहभागिता नहीं होती थी। यद्यपि फ्रांस की क्रांति के अनेक कारण थे, परन्तु मध्यम वर्ग के असंतोष और इसी वर्ग के द्वारा जनचेतना का जागृत करना-क्रांति को अवश्यम्भावी बना दिया। जितने भी दार्शनिक थे, जिन्होंने बौद्धिक चेतना जगाई, सभी मध्यम वर्ग के थे, क्रांति के अधिकांश नेता भी मध्यम वर्ग के थे, जिन्होंने क्रांति का संचालन किया। यह सच है कि मजदूर तथा किसानों ने मिलकर क्रांति को सफल बनाया, लेकिन उसके बाद भी सत्ता उनके हाथ में नहीं आई। 4 अगस्त 1789 को जब नेशनल एसेम्बली द्वारा सामन्तवाद की समाप्ति हुई तो उसके द्वारा अपनायी गयी आर्थिक नीतियों ने स्पष्ट कर दिया कि क्रांति पर बुर्जआ वर्ग हावी हो गया है। इस क्रांति से मध्यम वर्ग को ही लाभ हुआ, साधारण जनता को तो मताधिकार भी नहीं दिया गया। नेशनल एसेम्बली ने एक कानून बना कर मिलों में काम करने वाले मजदूरों के संगठन पर प्रतिबन्ध लगा दिया। क्रांति का नारा स्वतंत्रता, समानता एवं बन्धुत्व का प्रयोग पादरियों तथा सामन्तों के विशेषाधिकारों को समाप्त करने एवं मध्यम वर्ग के लोगों के लिए विशेष सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए था। सन् 1789 ई० से 1815 तक शासन पर मध्यम वर्ग का ही अधिकार रहा। यही कारण था कि जैकोबिन दल ने आतंक का राज्य स्थापित कर सर्वहारा वर्ग को राजनैतिक तथा आर्थिक अधिकार दिलाने का अस्थाई प्रयास किया था। उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए इतिहासकारों की यह बात तथ्यपरक प्रतीत होती है कि फ्रांस की क्रांति का स्वरूप मध्यवर्गीय था, क्योंकि मध्यमवर्ग के लोग ही इसके विशेष्य कारण के रूप में थे, क्रांति का नेतृत्व भी इन्होंने ही किया और सर्वाधिक लाभ भी इसी वर्ग को प्राप्त हुआ।

निष्कर्षतः, सन् 1789 की फ्रांस की क्रांति ने फ्रांस में एक ऐसे युग का सूत्रपात किया जिसमें 'स्वतंत्रता', 'समानता' एवं 'बन्धुत्व' की नींव पड़ी तथा मानवाधिकारों की रक्षा हुई। साथ ही यूरोप के अन्य देश भी इन विचारों से प्रभावित हुए और वहाँ भी सुधारों के एक नये सिलसिला शुरू हुआ।

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