पेरिस के शांति समझौते से असंतुष्ट राज्यों ने 1936 के अंत तक इस व्यवस्था के अन्तर्गत अपने कर्त्तव्यों से स्वयं को मुक्त कर लिया था। अब वे अपनी क्षति-पूर्ति का दावा कर रहे थे, जिसका अर्थ क्षति-पूर्ति न होने पर केवल युद्ध ही हो सकता था। इस खतरे के कारण ब्रिटिश सरकार जो अपनी ओर से निःशस्त्रीकरण करके एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहती थी, ऐसा करने का इरादा छोड़ दिया और प्रतिरक्षा के नाम पर सशस्त्रीकरण में जुट गयी। राष्ट्रसंघ में इन तमाम घटनाओं का मौन और मूक साक्षी बना रहा और अंततः वह घड़ी आ ही गयीं। द्वितीय विश्वयुद्ध के कारणों की चर्चा के क्रम में प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति और पेरिस संधि से लेकर 1939 तक के घटनाक्रम का उल्लेख प्रासंगिक होगा, जिसकी अपरिहार्य परिणति के रूप में द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ।