कुटीर उद्योग का महत्व एवं उसकी उपयोगिता को लिखें। Kutir Udyog Ka Mahatva Aur Uski Upyogita Ko Likhen.
702 views
3 Votes
3 Votes
कुटीर उद्योग का महत्व एवं उसकी उपयोगिता को लिखें। Or, Kutir Udyog Ka Mahatva Aur Uski Upyogita Ko Likhen.

1 Answer

0 Votes
0 Votes
 
Best answer

यद्यपि औद्योगीकरण की प्रक्रिया ने भारत के कुटीर उद्योग को काफी क्षति पहुँचाई, मजदूरों की आजीविका को प्रभावित किया, परन्तु इस विषम एवं विपरीत परिस्थिति में भी गाँवों एवं कस्बों में यह उद्योग पुष्पित एवं पल्लवित होता रहा तथा जन साधारण को लाभ पहुँचाता रहा । राष्ट्रीय आन्दोलन, विशेषकर स्वदेशी आन्दोलन के समय इस उद्योग की अग्रणी भूमिका रही । अतः इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता । महात्मा गाँधी ने कहा था कि लघु एवं कुटीर उद्योग भारतीय सामाजिक दशा के अनुकूल है। ये राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाहित करते हैं । कुटीर उद्योग उपभोक्ता वस्तुओं, अत्यधिक संख्या को रोजगार तथा राष्ट्रीय आय काअत्याधिक समान वितरण सुनिश्चित  करते हैं । तीव्र औद्योगीकरण के प्रक्रिया में लघु उद्योगों ने सिद्ध किया कि वे बहुत तरीके से फायदेमन्द होते हैं । सामाजिक, आर्थिक व तत्सम्बन्धी मुद्दे को समाधान इन्हीं उद्योगों से होता है । इसके ठीक से कार्यकरण पर तीव्र आर्थिक विकास निर्भर करता है । यह सामाजिक, आर्थिक प्रगति व संतुलित क्षेत्रवार विकास के लिए एक शक्तिशाली औजार है । इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन उद्योगों की प्रगति बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर को बढ़ाती है, कौशल में वृद्धि, उद्यमिता में वृद्धि तथा उपयुक्त तकनीक का बेहतर प्रयोग सुनिश्चत करती है । इसको प्रारम्भ करने में बहुत ही कम पूँजी की आवश्यकता होती है। ये उत्पादकीय क्षमता के फैलाव पर ध्यान देते हैं, जबकि औद्योगीकरण में उत्पादन शक्ति केवल कुछ हाथों में रहती है । कुटीर उद्योग जनसंख्या के बड़े शहरों में प्रवाह को रोकता है ।

आधुनिक औद्योगिक प्रणाली के विकास के पूर्व भारतीय निर्मित वस्तुओं का विश्वव्यापी बाजार था । भारतीय मलमल और छींट तथा सूती वस्त्रों की मांग पूरे विश्व में होती थी । भारतीय उद्योग न केवल स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए माल उपलब्ध कराते थे, बल्कि वे निर्मित वस्तुओं का निर्यात भी करते थे । भारत से निर्यात के मुख्य वस्तुओं में रुई तथा सिल्क, छींट, रंगारंग के बर्तन तथा ऊनी कपड़े शामिल हैं ।

ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग भारत में हाथों से बनी हुई वस्तुओं को ज्यादा तरजीह देते थे । हाथों से बने महीन धागों के कपड़े, तसर सिल्क, बनारसी तथा बालुचेरो साड़ियाँ तथा बुने हुए बॉडर वाली साड़ियाँ एवं मद्रास की प्रसिद्ध लुगियों की मांग ब्रिटेन के उच्च वर्गों में अधिक थी । मशीनों द्वारा इसकी नकल नहीं की जा सकती थी और विशेष बात तो यह थी कि इस पर अकाल और बेरोजगारी का भी असर नहीं होता था क्योंकि यह महंगी होती थी और सिर्फ उच्च वर्ग के द्वारा विदेशों में उपयोग में लायी जाती थीं।

अंग्रेजों के साथ राजनैतिक सम्बन्ध कायम होने, और औद्योगीकरण के कारण भारत का कुटीर उद्योग एवं हस्त शिल्प उद्योग का पतन हुआ । चूक ब्रिटिश सरकार की नीति भारत में विदेशी निर्मित वस्तुओं का आयात एवं भारत के कच्चा माल के निर्यात को प्रोत्साहन देना था, इसलिए ग्रामीण उद्योग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया । फिर भी राष्ट्रीय आन्दोलन, विशेषकर स्वदेशी आन्दोलन के समय खादी वस्त्रों की मांग ने कुटीर उद्योग को बढ़ावा दिया । दो विश्वयुद्धों के बीच कुटीर उद्योग द्वारा उत्पादित वस्तुओं की मांग में वृद्धि हुई और कारखानों के साथ कुटीर उद्योग भी क्षेत्रीय जगहों पर उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे।

RELATED DOUBTS

Peddia is an Online Question and Answer Website, That Helps You To Prepare India's All States Boards & Competitive Exams Like IIT-JEE, NEET, AIIMS, AIPMT, SSC, BANKING, BSEB, UP Board, RBSE, HPBOSE, MPBSE, CBSE & Other General Exams.
If You Have Any Query/Suggestion Regarding This Website or Post, Please Contact Us On : [email protected]

CATEGORIES