जलोढ़ मृदा के बारे में लिखें। Jalodh Mrida Ke Bare Mein Likhen.
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जलोढ़ मृदा के बारे में लिखें। Or, Jalodh Mrida Ke Bare Mein Likhen.

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यह मृदा भारत में विस्तृत रूप से फैली हुई सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मृदा है । उत्तर भारत का मैदान पूर्णतः जलोढ़ निर्मित है, जो हिमालय की तीन महत्त्वपूर्ण नदी प्रणालियों सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र द्वारा लाए गए जलोढ़ के निक्षेप से बना है । राजस्थान एवं गुजरात में भी एक संकरी पट्टी के रूप में इस मृदा का प्रसार है ।  जलोढ़ मृदा पूर्वी तटीय मैदान स्थित महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों द्वारा निर्मित डेल्टा का निर्माण जलोढ़ से ही जुड़ा है। कुल मिलाकर भारत में लगभग 6.4 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र पर जलोढ मृदा फैली हुई हैं।

इस मृदा के कण नदी मुहाने से घाटी में ऊपर और क्रमश: बड़े होते जाते हैं । ऐसी मृदाएँ पर्वत पदीय क्षेत्र में बने मैदानों जैसे-द्वार, चौर एवं तराई में आमतौर पर मिलती हैं। इनके कणों पर घटकों के अलावा मृदा की पहचान इनके आयु से भी होती है । आयु के आधार पर जलोढ़ मृदा के दो प्रकार हैं:-पुराना एवं नवीन जलोढ़ । पुराने जलोढ़ में कंकड़ एवं बजरी की मात्रा अधिक होती है। इसे बांगर कहा जाता है । बांगर की तुलना में नवीन जलोढ़ में महीन कण पाये जाते हैं; ये खादर कहलाते है । 'खादर' में बालू एवं मृत्तिका का मिश्रण होता है । ये काफी उपजाऊ होते  है।

जलोढ़ मृदा में पोटाश, फास्फोरस और चूना जैसे तत्त्वों की प्रधानता होती है, जबकि इसमें नाइट्रोजन एवं जैव पदार्थो की कमी रहती है । यह मिट्टी गन्ना, चावल, गेहूँ, मक्का, दलहन जैसी फसलों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। अधिक उपजाऊ होने कारण इस मिट्टी पर गहन कृषि की जाती है। परिणामतः, यहाँ जनंसख्या घनत्व भी ऊँचा है । 

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