इस प्रकार की मृदा का विकास प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी एवं दक्षिणी हिस्से में रवेदार आग्नेय चट्टानों द्वारा सामान्यतः 100 से०मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में हुआ है।
इस मृदा में में लौहांश की मात्रा के कारण इसका रंग लाल (Red) होता है । जलयोजन के पश्चात् यह मृदा पीले (Yellow) रंग की हो जाती है।
मूल रूप से यह ग्रेनाइट, नीस- जैसे रवेदार आग्नेय चट्टानों के विघटित एवं रूपांतरित होने से बने हैं । इसका विस्तार भारत के कुल कृषि भूमि के 7.2 करोड़ हेक्टयर भूमि पर पाया जाता है।
लाल या पीली मृदा का प्रसार तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा, द० पू० महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, छोटानागपुर पठार एवं मेघालय पठार के क्षेत्रों में है।
जैव पदार्थों की कमी के कारण यह मृदा जलोढ़ एवं काली मृदा की अपेक्षा कम उपजाऊ होती है। उर्वरकों का उपयोग कर इसकी उत्पादकता को बढ़ाई जा सकती है।
इस मृदा में सिंचाई की व्यवस्था कर चावल, ज्वार बाजरा मक्का मूंगफली तंबाकू और फलों का उत्पादन किया जा सकता है।