लैटेराइट शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के लेटर (LATER) शब्द से हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ ईट(Brick) होता है । इस प्रकार के मिट्टी का विकास उच्च तापमान एवं अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में हुआ है ।
भारत में इस मृदा का विस्तार 1.3 करोड़ हेक्टेयर से भी अधिक भू-भाग पर है । ऋतुवत् भारी वर्षा से ऊँचे सपाट अपरदित सतहों पर यह मृदा पायी जाती है ।
यह मृदा, तीव्र निक्षालन (Leaching) का परिणाम है । जिसमें ह्यूमस की मात्रा नगण्य होती है । अत्यधिक तापमान के कारण जैविक पदार्थो को अपघटित करने वाले वेक्टीरिया (Beckteria) नष्ट हो जाते हैं । अपक्षय के कारण लैटेराट मिट्टी कठोर हो जाती है ।
एल्युमीनियम(Aluminium) और लोहे(Iron) के आक्साईड के कारण रंग लाल(Red) होता है । इस प्रकार की मिट्टियों में रासायनिक खाद एवं अन्य उर्वरकों का प्रयोग कर उत्पादन किया जा सकता है । कर्नाटक, केरल, तमिलनाडू, म०प्र० और उड़ीसा तथा असम की पहाड़ियों में लैटेराइट मिट्टी का विस्तार मिलता है ।
कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में मृदा संरक्षण तकनीक के सहारे चाय एवं कहवा का उत्पादन किया जाता है । तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और केरल में इस मृदा में काजू की खेती उपयुक्त मानी जाती है ।