जेनेवा समझौता (1954) के द्वारा कंबोडिया (Cambodia) को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा दिया गया। राजकुमार नोरोडोम सिहानुक को शासनाध्यक्ष बनाया गया। सिहानुक ने तटस्थतावादी नीति अपनाई।
वे अमेरिका-समर्थित दक्षिण-पूर्व एशियाई संगठन में सम्मिलित नहीं हुए। इससे चिढ़कर अमेरिका ने बदले की कार्रवाई आरंभ कर दी।
सन् 1965 में अमेरिका ने वियतनाम के साथ ही कंबोडिया के सीमावर्ती गाँवों पर बमबारी की। 1969 में अमेरिकी जहाजों ने कंबोडिया में जहर की वर्षा कर हजारों एकड़ रबर की फसल नष्ट कर दी।
सिहानुक ने क्षतिपूर्ति की माँग की जिसे ठुकरा दिया गया। अब सिहानुक ने साम्यवादी पूर्वी जर्मनी से संबंध बढ़ाने आरंभ कर दिए।
अमेरिका कंबोडिया में साम्यवादी प्रभाव नहीं बढ़ने देना चाहता था। इसलिए, अमेरिका ने 1970 में सी० आई० ए० की सहायता से सिहानुक का तख्ता पलटकर जनरल लोन नोल के नेतृत्व में अमेरिका-समर्थित दक्षिणपंथी सरकार की स्थापना की।
सिहानुक ने पेकिंग में अपनी नई सरकार बनाई तथा लोन नोल की सरकार को अवैध घोषित कर दिया। उत्तरी वियतनाम की सहायता तथा चीन के समर्थन से उन्होंने लोन नोल के विरुद्ध युद्ध आरंभ कर दिया।
जब सिहानुक की विजयी सेना राजधानी नोम पेन्ह की ओर बढ़ी तब अमेरिका ने कंबोडिया में अपनी सेना भेज दी। युद्ध के भयंकर होने पर 1970 में जकार्ता सम्मेलन बुलाया गया, लेकिन शांति की स्थापना नहीं हो सकी। खूनी संघर्ष चलता रहा।
सन् 1975 ई० में सिहानुक की लाल खमेर सेना ने राजधानी पर अधिकार कर लिया। लोन नोल भागकर अमेरिका चला गया।
1975 में स्वदेश वापस आकर सिहानुक पुनः शासनाध्यक्ष बने। कंबोडिया का नाम बदलकर कंपूचिया कर दिया गया।
सन् 1978 ई० में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। अमेरिकी नीति कंबोडिया में भी विफल हो गई।