सविनय अवज्ञा आंदोलन निम्नलिखित कारण थे —
- साइमन कमीशन का भारत आना : असहयोग आंदोलन के पश्चात भारत का राजनीतिक वातावरण उद्वेलित हो चुका था।
अतः 1928 में आयोग के बंबई आने पर इसका व्यापक रूप से विरोध किया गया, क्योंकि इसमें किसी भी भारतीय को सम्मिलित नहीं किया गया था।
यह प्रजातीय विभेद का उदाहरण था। विरोध को दबाने के लिए सरकार ने दमनचक्र चलाया। इससे राजनीतिक संघर्ष बढ़ गया।
- नेहरू रिपोर्ट : सन् 1928 ई० में ही मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता वाली समिति ने को डोमिनियन स्टेटस का दर्जा देने की माँग की। इसे सभी दलों ने स्वीकार नहीं किया।
- आर्थिक मंदी का प्रभाव : विश्वव्यापी आर्थिक मंदी (1929-30) ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव डाला। मूल्य-वृद्धि हुई जिससे महँगाई बढ़ी। मंदी का सबसे बुरा प्रभाव किसानों पर पड़ा। इससे सरकार के विरुद्ध आक्रोश बढ़ गया।
- समाजवाद का बढ़ता प्रभाव : काँग्रेस के अंदर जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस ने काँग्रेस पर नई नीति अपनाने और पूर्ण स्वराज की माँग के लिए दबाव डाला।
ये औपनिवेशिक स्वराज से संतुष्ट नहीं थे और पूर्ण स्वराज की माँग कर रहे थे। इसके लिए नेहरू और बोस ने इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की।
- क्रांतिकारी गतिविधियों में वृद्धि : सरकारी नीतियों की प्रतिक्रियास्वरूप देश में, विशेषतः पंजाब, उत्तर प्रदेश और बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियाँ बढ़ गईं। सन् 1929 ई० में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय विधानसभा में बम फेंका।
इरविन की रेलगाड़ी को उड़ाने का प्रयास किया गया। सूर्यसेन ने चटगाँव पर अधिकार कर एक अस्थायी सरकार की स्थापना की।
- पूर्ण स्वराज की माँग : लाहौर काँग्रेस अधिवेशन (दिसंबर 1929) में जवाहरलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज की माँग की। 26 जनवरी 1930 को पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। इससे एक नया उत्साह उत्पन्न हुआ।
- सरकार से समझौता का प्रयास : आंदोलन आरंभ करने के पूर्व गाँधीजी ने 1930 में इरविन के समक्ष ग्यारह-सूत्री माँग रखी।
इसमें प्रमुख माँग नमक कर हटाने तथा राजनीतिक बंदियों की रिहाई थी। इसपर सरकार ने ध्यान नहीं दिया।
अतः, गाँधीजी ने नमक कानून भंग कर सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करने का निश्चय किया।