मानव शरीर स्वयं भी सबसे बड़ा संसाधन है, क्योंकि इससे जीवन के अनेक कार्य किए जाते हैं; जैसे-बोझा ढोना, कार्यालय का काम आदि। मानव स्वयं ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपने शरीर और अपनी विभिन्न तकनीकों का उपयोग करता है तथा प्रकृति की अन्य वस्तुओं का भी उपयोग करने के लिए अपनी कार्यात्मकता, अर्थात कार्य करने की योग्यता का विकास करता है।
मानवीय क्रियाकलाप सर्वाधिक महत्त्व के हैं। मानव न रहे तो सारे पदार्थ या धन यों ही पड़े रह जाएँगे। अपने अनुपम साहस, अपितु दुःसाहस, पराक्रम, शौर्य, संघर्षशीलता, ज्ञान, विलक्षण प्रतिभा, जिज्ञासा और सूझ-बूझ, अन्वेषण करने की तीव्र उत्कंठा इत्यादि गुणों के कारण मनुष्य सभी प्रकार के संसाधनों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यह स्वयं संसाधन होते हुए भी संसाधनों का उपभोक्ता भी है।