1857 के आन्दोलन की प्रकृति के विषय में लिखा गया उपरोक्त कथन “यह न तो प्रथम न राष्ट्रीय और न ही स्वतन्त्रता संग्राम था" आर० सी० मजूमदार (R. C Majumdar) द्वारा अपनी पुस्तक British Paramountcy and Indian Renaissance Part I में स्पष्ट किया है।
जबकि अंग्रेज इतिहासकार टी० आर० होम्स ने इसे "बर्बरता तथा सभ्यता के बीच युद्ध" की संज्ञा दी तथा शशि भूषण चौधरी अपनी पुस्तक "Civil Rebellion in Indian Mutinies, 1857-1859" में 1857-58 ई० की घटनाओं को सैनिक व असैनिक विद्रोहों के सम्मिश्रण के रूप में देखते हैं।