अनुच्छेद-17 नागरिक अधिकारों की संरक्षण अधिनियम 1955 से संबंधित है।
अनुच्छेद-17 अस्पृश्यता को समाप्त करने की व्यवस्था है। तथा किसी भी रूप में छूआ-छूत आचरण निषिद्ध करता है। अस्पृश्यता से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा, जो विधि अनुसार दंडनीय होगा।
भारतीय अस्पृश्यता अधिनियम-1955 संसद द्वारा लाया गया। इसमें में संशोधन कर इसका नाम बदलकर भारतीय नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1976 किया गया था।
अस्पृश्यता शब्द को न तो संविधान में और न हीं अधिनियम में परिभाषित किया गया है। मैसूर उच्च न्यायालय ने अनुच्छेद-17 के मामले में व्यवस्था दी कि शाब्दिक एवं व्याकरणीय समझ से परे इसका प्रयोग ऐतिहासिक है।