न्यायिक सक्रियता की अवधारणा का उद्भव सर्वप्रथम अमेरिका (America) में हुआ है। इस शब्दावली का सर्वप्रथम प्रयोग वर्ष 1947 में अमेरिकी इतिहासकार एवं शिक्षाविद् आर्थर शेल्सिंगर जूनियर के द्वारा किया गया था।भारत में न्यायिक सक्रियता का सिद्धांत 1970 के दशक के मध्य में आया।
भारत में इस सिद्धान्त का नींव न्यायमूर्ति वी० आर० कृष्ण अय्यर, न्यायमूर्ति पी० एन० भवगती, न्यायमूर्ति ओ० चिन्नप्पा रेड्डी आदि ने रखी।
न्यायिक सक्रियता का अर्थ न्यायापालिका द्वारा सरकार के अन्य दो अंगों को अपने संवैधानिक दायित्वों के पालन हेतु सक्रिय करना है। न्यायिक सक्रियता को न्यायिक गतिशीलता भी कहते है।