पांचाल नरेश द्रुपद ने एक स्वयंवर का आयोजन किया जिसमें यह शर्त रखी गई कि धनुष की चाप चढ़ा कर निशाने पर तीर मारा जाए; विजेता उनकी पुत्री द्रौपदी से विवाह करने के लिए चुना जाएगा।
अर्जुन ने यह प्रतियोगिता जीती और द्रौपदी ने उसे वरमाला पहनाई। पांडव उसे लेकर अपनी माता कुंती के पास गए जिन्होंने बिना देखे ही उन्हें लाई गई वस्तु को आपस में बाँट लेने को कहा। जब कुंती ने द्रौपदी को देखा तो उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ, किंतु उनकी आज्ञा की अवहेलना नहीं की जा सकती थी।
बहुत सोच-विचार के बाद युधिष्ठिर ने यह निर्णय लिया कि द्रौपदी उन पाँचों की पत्नी होगी।
जब द्रुपद को यह बताया गया तो उन्होंने इसका विरोध किया। किंतु ऋषि व्यास ने उन्हें इस तथ्य से अवगत कराया कि पांडव वास्तव में इंद्र के अवतार थे और उनकी पत्नी ने ही द्रौपदी के रूप में जन्म लिया था। अतः नियति ने ही उन सबका साथ निश्चित कर दिया था।
व्यास ने यह भी बताया कि एक बार युवा स्त्री ने पति प्राप्ति के लिए शिव की आराधना की और उत्साह के अतिरेक में एक के बजाय पाँच बार पति प्राप्ति का वर माँग लिया। इसी स्त्री ने द्रौपदी के रूप में जन्म लिया तथा शिव ने उसकी प्रार्थना को परिपूर्ण किया है। इन कहानियों से संतुष्ट होकर द्रुपद ने इस विवाह को अपनी सहमति प्रदान की।