केरल में वेस्ट नील वायरस रोग का प्राथमिक वाहक मच्छर (Mosquito) है।
वेस्ट नील वायरस मनुष्यों में एक घातक न्यूरोलॉजिकल (मस्तिष्क में संबंधी) बीमारी का कारण बन सकता है। इससे संक्रमित लगभग 80% लोगों में कोई लक्षण प्रदर्शित नहीं होता है।
वेस्ट नील वायरस मुख्य रूप से संक्रमित मच्छरों के काटने से फैलता है।
यह वायरस घोड़ों में भी गंभीर बीमारी और मृत्यु का कारण बन सकता है।
पक्षी (Birds), वेस्ट नील वायरस के प्राकृतिक वाहक है। यह क्यूलेक्स मच्छरों द्वारा मानव में फैलता है।
संक्रमित पक्षियों को काटने पर मच्छर संक्रमित हो जाते हैं। वेस्ट नील वायरस की पहचान पहली बार वर्ष 1937 में उत्तरी युगांडा के वेस्ट नील के एक मरीज में की गई थी।
रोग तथा उसके वाहक —
रोग |
वाहक |
मलेरिया |
मादा एनाफिलीज मच्छर |
सोने की बीमारी |
सी सी मक्खी |
कालाजार |
बालू मक्खी |
फाइलेरिया |
क्यूलेक्स मच्छर |
डेंगू |
मादा एडीज मच्छर |