नील-दर्पण (Neel-Darpan), नील उत्पादक किसानों के उत्पीड़न से संबंधित है।
नील से रंग बनाने का उद्योग भारत में 18वीं सदी के अंत में शुरू हुआ। किसानों पर अत्याचार का सजीव चित्रण प्रसिद्ध बंगला लेखक दीनबंधु मित्र ने 1859 में अपने नाटक नील-दर्पण में किया है।