भारतीय संसद (Member of Parliament - MP) में लोकसभा राज्यसभा दो सदन हैं। राज्यसभा प्रथम सदन है। इसमें 250 सदस्य रह सकते हैं, जिनमें 238 निर्वाचित तथा 12 मनोनीत होते हैं।
इन सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से होता है। उन्हें राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य एकल संक्रमणीय मत के आधार पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से चुनते हैं।
12 सदस्यों का मनोनयन राष्ट्रपति (President) द्वारा साहित्य, कला, विज्ञान तथा समाज सेवा के क्षेत्र से किया जाता है।
राज्यसभा का सदस्य होने के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ है —
- वह भारत का नागरिक हो।
- उसकी उम्र कम-से-कम 30 वर्ष की हो।
- किसी सरकारी लाभ के पद पर नहीं हो।
- वह पागल या दिवालिया नहीं हो।
राज्यसभा एक स्थायी संस्था है। यह कभी भंग नहीं होती है। इसके 1/3 (एक-तिहाई) सदस्य दूसरे वर्ष अपना स्थान रिक्त करते हैं, जो नये सदस्यों द्वारा भरा जाता है।
इसके सदस्यों की अवधि 6 वर्ष की होती है। राज्यसभा का सभापति उपराष्ट्रपति होता है।
अधिकार एवं कर्त्तव्य (Rights and Duties) —
- विधान सम्बन्धी अधिकार : राज्यसभा के कानून सम्बन्धी अधिकार अत्यन्त सीमित हैं। धन विधेयक तो पहले यहाँ पेश ही नहीं किये जा सकते हैं। लोकसभा द्वारा पारित विधेयक को पुनर्विचार अथवा संशोधन हेतु राज्यसभा उसे लौटा सकता है, लेकिन अन्त में उसे अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है।
- कार्यपालिका सम्बन्धी अधिकार : कार्यपालिका सम्बन्धी भी इसके अधिकार अत्यन्त ही सीमित एवं नगण्य हैं। मंत्रिपरिषद् केवल लोकसभा के प्रति ही उत्तरदायी होती हैं, राज्यसभा के प्रति नहीं। अत: राज्यसभा अविश्वास का प्रस्ताव पास कर मंत्रिपरिषद् को अपदस्थ नहीं कर सकती है। राज्यसभा कार्यपालिका से किसी विषय के बारे में केवल जानकारी माँग सकती है, तथा उसकी आलोचना कर सकती है।
- वित्त सम्बन्धी अधिकार : राज्यसभा के वित्त सम्बन्धी अधिकार नाममात्र के हैं। वित्त विधेयक को तो यहाँ प्रारंभ ही नहीं किया जा सकता है। किसी विधेयक को संशोधन या अस्वीकृति का अधिकार तो है, लेकिन लोकसभा इसे नहीं भी मान सकता है। वित्त विधेयक को केवल 11 दिन तक ही रोक सकता है।
- निर्वाचन सम्बन्धी अधिकार : राष्ट्रपति के निर्वाचन में दोनों सदनों को बराबर-बराबर अधिकार प्राप्त हैं। उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में भी राज्यसभा को लोक सभा के बराबर ही अधिकार प्राप्त है। इसे संविधान के संशोधन का भी अधिकार है।