पिण्डों (अथवा वस्तुओं) की गति का वर्णन करने के लिए न्यूटन नियम परिभाषित किए हैं। इन नियमों को न्यूटन के गति का नियम कहा जाता है। न्यूटन के गति के नियम बल की परिशुद्ध परिभाषा देते हैं और वस्तु पर लगाए गए बल तथा उसके द्वारा प्राप्त की गई गति की अवस्था के बीच संबंध स्थापित करते हैं।
1.न्यूटन का गति का प्रथम नियम
प्रथम नियम के अनुसार, कोई विरामस्थ वस्तु, विरामस्थ ही बनी रहेगी और गतिमान वस्तु निरंतर एकसमान चाल से सीधी रेखा में गतिमान रहेगी, जब तक कि उसकी विरामावस्था अथवा एकसमान गति की अवस्था में परिवर्तन के लिए बाहरी बल के द्वारा उसे बाध्य नहीं किया जाता।
उल्लेखनीय है कि किसी वस्तु के विरामस्थ रहने की अथवा यदि गतिमान है, तो एक सीधी रेखा में निरंतर गतिमान रहने की प्रवृत्ति जड़त्व (Inertia) कहलाती है।
वास्तव में द्रव्यमान किसी वस्तु के जड़त्व की माप है। वस्तु में यदि अधिक द्रव्यमान होता है, तो उसमें जड़त्व भी अधिक होता है अर्थात हल्की वस्तुओं की अपेक्षा भारी वस्तुओं में अधिक जड़त्व होता है।
2. न्यूटन का गति का द्वितीय नियम
न्यूटन के गति के प्रथम नियम से यह स्पष्ट है कि किसी वस्तु पर बाह्य बल लगाने से उसकी गति में परिवर्तन होता है। गति में परिवर्तन होने का अर्थ वस्तु में त्वरण के उपस्थित होने से है। अतः किसी वस्तु पर बल लगाने से उसमें त्वरण उत्पन्न होता है, प्रयोगों द्वारा यह देखा गया है कि किसी वस्तु पर आरोपित बल F उस वस्तु के द्रव्यमान m तथा वस्तु में बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण a के गुणनफल के बराबर होता है।
बल = द्रव्यमान x त्वरण
F=mxa
इस समीकरण को ही न्यूटन का गति का द्वितीय नियम कहते हैं। बल का SI मात्रक न्यूटन (N) है। 1 न्यूटन वह बल है, जो 1 किग्रा. द्रव्यमान की वस्तु पर लगाए जाने पर उसमें 1 मी./सेकंड2 का त्वरण उत्पन्न करता है।
3. न्यूटन का गति का तृतीय नियम
गति के तृतीय नियम के अनुसार जब कभी एक वस्तु किसी दूसरी वस्तु पर बल लगाती है, तो दूसरी वस्तु भी पहली वस्तु पर बराबर और विपरीत दिशा में बल लगाती है।
पहली वस्तु द्वारा दूसरी वस्तु पर लगाए गए बल को 'क्रिया' कहते हैं और दूसरी वस्तु द्वारा पहली वस्तु पर लगाए गए बल को प्रतिक्रिया कहते हैं। क्रिया एवं प्रतिक्रिया परिमाण में बराबर तथा दिशा में एक-दूसरे के विपरीत होती हैं। अतः न्यूटन के तृतीय नियम को क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम भी कहते हैं।