हर्षवर्धन (Harshvardhan) :- गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद पुष्यभूति वंश सबसे शक्तिशाली अवस्था में रहा इनकी राजधानी थानेश्वर में थी, और इनका पहला महत्त्वपूर्ण शासन प्रभाकरवर्द्धन था। हर्षवर्द्धन का राज्यारोहण 606 ई० में संकटपूर्ण परिस्थिति में हुआ।
जब बंगाल के शासक शशांक ने पुष्यभूति वंश को कमजोर कर दिया था। परंतु हर्ष ने अपनी प्रतिभा से इस वंश को मजबूत और स्थिर बनाया। इसने सफल सैनिक अभियानों द्वारा पंजाब से बंगाल तक साम्राज्य विस्तार किया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार कामरूप (असम) और कश्मीर के शासक भी उसकी अधीनता स्वीकार करते थे। हर्ष ने नर्वदा के दक्षिण में भी साम्राज्य विस्तार करना चाहा लेकिन चालुक्य वंश के शासक पुलकेशिन द्वितीय ने उसे पराजित किया।
हर्ष के संदर्भ में हमें उसके राजकवि वाणभट्ट की कृति हर्षचरित, मधुवन वांसखेड़ा और संजान ताम्रपत्र लेख एवं हृवेनसांग के यात्रा वृतांत आदि से जानकारी मिलती है।
हर्ष का झुकाव बौद्ध धर्म की ओर था। लेकिन वह अन्य धर्मावलम्बियों के साथ भी अच्छा व्यवहार करता था। इसने कई स्तूप, बौद्ध विहार एवं कुछ अस्पतालों का निर्माण भी करवाया। इसने कन्नौज में पाँचवीं बौद्ध संगीति का आयोजन 643 ई0 में करवाया। इसमें लगभग 20 राजाओं सहित हजारों तीर्थयात्री एवं विद्वान शामिल हुए। हवेनसांग इस सभा का मुख्य अतिथि था। हर्ष की मृत्यु के बाद उत्तर भारत में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई।
Note:- हृवेनसांग एक चीनी यात्री था, जिसने हर्ष के साम्राज्य का भ्रमण किया था। इसने हर्ष के प्रशासन एवं आमलोगों के जीवन का विस्तृत वर्णन अपने यात्रा वृतांत में किया है। हर्ष को हवेनसांग ने बौद्ध धर्म का महान् उपासक बताया। लेकिन वह शिव और सूर्य का भी उपासक था।