16वीं शताब्दी में कैथोलिक चर्च में प्रविष्ट दोषों को दूर करने के उद्देश्य से यूरोप के विभिन्न देशों में एक आंदोलन चलाया गया, जिसे धर्म-सुधार आंदोलन (Religious Reform Movement) के नाम से जाना जाता है।
यह आंदोलन पुनर्जागरण (Renaissance) का एक महत्त्वपूर्ण परिणाम था। जर्मनी का ईसाई भिक्षु मार्टिन लूथर, फ्रांस का काल्विन, इंग्लैंड का जानवाई क्लिफ और स्विट्जरलैण्ड का जाविंगली आदि इस आंदोलन के महत्त्वपूर्ण नेता थे।
चर्च की सर्वोच्चता का विरोध करने वाले 'प्रोटेस्टेंट' के नाम से प्रसिद्ध हुए। प्रोटेस्टेंट शब्द की उत्पत्ति 'प्रोटेस्ट' (विरोध करना) से हुई।
मार्टिन लूथर के नेतृत्व में स्वयं को रोमन कैथोलिक चर्च से अलग कर लेने वाले 'प्रोटेस्टेंट' कहलाए। यह आंदोलन मुख्य रूप से कैथोलिक चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरूद्ध चलाया गया। अतः इसे प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार आंदोलन के नाम से जाना जाता है।
धर्म-सुधार आंदोलन के उदय के कई कारण थे जैसे-
(i) चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार, पुनर्जागरण का प्रभाव,
(ii) जन सामान्य पर भारी कर तथा
(iii) राष्ट्रीय राज्यों का उदय।