मौलिक अधिकार से क्या तात्पर्य है? Maulik Adhikar Se Kya Taatparya Hai?
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मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)— मौलिक अधिकारों वाला खंड भारतीय संविधान की अंतरात्मा भी कहलाता है। 

औपनिवेशिक शासन (Colonial Rule) ने राष्ट्रवादियों के दिमाग में राज्य के प्रति संदेह का भाव पैदा कर दिया था। इसीलिए राष्ट्रवादी चाहते थे कि स्वतंत्र भारत में राज्य की सत्ता के दुरुपयोग से बचने के लिए कुछ लिखित अधिकार होने चाहिए। 

लिहाज़ा मौलिक अधिकार देश के सभी नागरिकों को राज्य की सत्ता के मनमाने और निरंकुश इस्तेमाल से बचाते हैं। 

इस तरह संविधान राज्य और अन्य व्यक्तियों के समक्ष व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है।

विभिन्न अल्पसंख्यक समुदाय भी चाहते थे कि संविधान में ऐसे अधिकारों को शामिल किया जाए जो उनके समूह की रक्षा कर सकें। 

फलस्वरूप बहुसंख्यकों से अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा का आश्वासन भी संविधान में दिया गया है। 

इन मौलिक अधिकारों के बारे में डॉ. अम्बेडकर ने कहा था कि इनका दोहरा उद्देश्य है— पहला, हरेक नागरिक ऐसी स्थिति में हो कि वह उन अधिकारों के लिए दावेदारी कर सकें और दूसरा, ये अधिकार हर उस सत्ता और संस्था के लिए बाध्यकारी हों जिसे कानून बनाने का अधिकार दिया गया है।

मौलिक अधिकारों के अलावा हमारे संविधान में एक खंड नीतिनिर्देशक तत्त्वों का भी है। संविधान सभा के सदस्यों ने यह खंड इसलिए जोड़ा था ताकि और ज्यादा सामाजिक व आर्थिक सुधार लाए जा सकें। 

वे चाहते थे कि स्वतंत्र भारतीय राज्य जनता की गरीबी दूर करने वाले कानून और नीतियाँ बनाते हुए इन सिद्धांतों को मार्गदर्शक के रूप में हमेशा अपने सामने रखे ।

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